Wednesday, July 31, 2013

दामनी का केस

  1. दामनी का केस कितना लम्बा चलेगा और क्या फैसला आयेगा सब राम भरोसे है क्यूँकि........
    तमाम दिन इंतज़ार में बीते
    पर इम्तहान बरबादी था
    अपने हक में होगा फैसला
    सोचना ही जल्दबाजी था
    निगाहे लाख टिका लो उम्मीद पर
    पर मामला बुनयादी था
    चलती सियासत की हरदम
    फिक्र किसे कब आबादी का
    हर आवाज़ दब जाती समय के साथ
    अब आदत हुयीं नाकामी का

दर्द वेदना और टीस


  1. Photo: आवाज़ दो अंतर्मन को
जो शांत किसी गुमसुम की तरह,
जो दबा के बैठा अपनी टीस को,
आवाज़ दो उस अंतर्मन को
किस लिए यह मौनता
किस लिए कर्ण और जीभा पर,
किया आमंत्रण विराम को,
कि उपस्तिथि रही नाम को
तोड़ो निरंतर इस चुप्पी को   
और आवाज़ दो अंतर्मन को
जो है विराजमान हृदय में
उस विकट झंझावर को 
अब तो कुछ विराम दो
जब तक चुप्पी टूटेगी नहीं
तब तक अनियंत्रित दर्द और वेदना
कुरेदगी भीतरी इनसान को
और खत्म हो जाएगी लालसा
स्थापित करने अपने ही सम्मान को 
इस लिए चुप्पी को विराम दो 
और आवाज़ दो अंतर्मन को
जो दबा के बैठा अपनी 
दर्द वेदना और टीस को,
    Photo: आवाज़ दो अंतर्मन को
जो शांत किसी गुमसुम की तरह,
जो दबा के बैठा अपनी टीस को,
आवाज़ दो उस अंतर्मन को
किस लिए यह मौनता
किस लिए कर्ण और जीभा पर,
किया आमंत्रण विराम को,
कि उपस्तिथि रही नाम को
तोड़ो निरंतर इस चुप्पी को   
और आवाज़ दो अंतर्मन को
जो है विराजमान हृदय में
उस विकट झंझावर को 
अब तो कुछ विराम दो
जब तक चुप्पी टूटेगी नहीं
तब तक अनियंत्रित दर्द और वेदना
कुरेदगी भीतरी इनसान को
और खत्म हो जाएगी लालसा
स्थापित करने अपने ही सम्मान को 
इस लिए चुप्पी को विराम दो 
और आवाज़ दो अंतर्मन को
जो दबा के बैठा अपनी 
दर्द वेदना और टीस को,
    आवाज़ दो अंतर्मन को
    जो शांत किसी गुमसुम की तरह,
    जो दबा के बैठा अपनी टीस को,
    आवाज़ दो उस अंतर्मन को
    किस लिए यह मौनता
    किस लिए कर्ण और जीभा पर,
    किया आमंत्रण विराम को,
    कि उपस्तिथि रही नाम को
    तोड़ो निरंतर इस चुप्पी को
    और आवाज़ दो अंतर्मन को
    जो है विराजमान हृदय में
    उस विकट झंझावर को
    अब तो कुछ विराम दो
    जब तक चुप्पी टूटेगी नहीं
    तब तक अनियंत्रित दर्द और वेदना
    कुरेदगी भीतरी इनसान को
    और खत्म हो जाएगी लालसा
    स्थापित करने अपने ही सम्मान को
    इस लिए चुप्पी को विराम दो
    और आवाज़ दो अंतर्मन को
    जो दबा के बैठा अपनी
    दर्द वेदना और टीस को,

अब अंधेरी रात है



  1. Photo: हर किसी से नफरत हर किसी से बुराई
जिंदगी जाने किस मोड़ पर चली आई 
भरोसे की उठी मइयत, हाथों में जुदाई
आग जो भड़की वह हमने ही थी लगाई
कौन दे सहारा जब हुआ दिल ही हरजाई
एक दूजे को दफनाने की कसम जो खाई
झूठी मोहब्बत कि दिल ने रसमें निभाई
अकेलेपन की जिंदगी न जाने क्यो भाइ
क्योँकि अकेलेपन की जिंदगी न हमको भाइ
न अकेलेपन की जिंदगी न तुमको भाइ
फिर भी गंदी सियासत की करी कराई
पर हमने और तुमने मुहर है लगाइ 
नतीजा..............
हर किसी से नफरत हर किसी से बुराई
जिंदगी जाने किस मोड़ पर चली आई.............

    असली में जो गुनाहगार है वही सिपहलसार है
    किसकी नियत तलाशिये सबके सब बीमार है
    सरफरोशी चले गए अब हमवतन भी लाचार है
    सब अपनी अपनी कहते है दूजे की दुश्वार है
    बीते दिन जब चाँदनी के तो अब अंधेरी रात है
    तेरे मेरे में सिमट गयी ये अपनेपन की बात है
    कौम बड़ी इंसानियत छोटी फीके हर जज्बात है
    छुरे और तमंचे थामे, जुदा एकदुजे के हाथ है
    कौन कहे लोग वही जिनका चोली दामन साथ है
    बीते दिन जब चाँदनी के तो अब अंधेरी रात है

झूठी मोहब्बत

  1. ...
    Photo: हर किसी से नफरत हर किसी से बुराई
जिंदगी जाने किस मोड़ पर चली आई 
भरोसे की उठी मइयत, हाथों में जुदाई
आग जो भड़की वह हमने ही थी लगाई
कौन दे सहारा जब हुआ दिल ही हरजाई
एक दूजे को दफनाने की कसम जो खाई
झूठी मोहब्बत कि दिल ने रसमें निभाई
अकेलेपन की जिंदगी न जाने क्यो भाइ
क्योँकि अकेलेपन की जिंदगी न हमको भाइ
न अकेलेपन की जिंदगी न तुमको भाइ
फिर भी गंदी सियासत की करी कराई
पर हमने और तुमने मुहर है लगाइ 
नतीजा..............
हर किसी से नफरत हर किसी से बुराई
जिंदगी जाने किस मोड़ पर चली आई.............
    हर किसी से नफरत हर किसी से बुराई
    जिंदगी जाने किस मोड़ पर चली आई
    भरोसे की उठी मइयत, हाथों में जुदाई
    आग जो भड़की वह हमने ही थी लगाई
    कौन दे सहारा जब हुआ दिल ही हरजाई
    एक दूजे को दफनाने की कसम जो खाई
    झूठी मोहब्बत कि दिल ने रसमें निभाई
    अकेलेपन की जिंदगी जाने क्यो भाइ
    क्योँकि अकेलेपन की जिंदगी हमको भाइ
    अकेलेपन की जिंदगी तुमको भाइ
    फिर भी गंदी सियासत की करी कराई
    पर हमने और तुमने मुहर है लगाइ
    नतीजा..............
    हर किसी से नफरत हर किसी से बुराई
    जिंदगी जाने किस मोड़ पर चली आई.............

छाया रंग काला भ्रष्टाचार है

  1. हुआ लाल गुलाबी रंग नदारात, छाया रंग काला भ्रष्टाचार है
    प्रतिदिन नए घोटाले करते, इन्हे आती नहीं डकार है
    मंत्री संतरी लूट रहे अब, दल दल में धसी सरकार है
    समाज और सेवा ताख पर रख दी, राजनीति व्यापार है
    जेब है खाली और मन है भारी, संकुचित हर अधिकार है
    महँगाई भी सर चड़ कर बोले, बेरोजगारी की मार है
    तो कैसे मने रे होली अबकी, जनता सत्ता से लाचार है
    कुंठा और निराशा पनपे, अनियन्त्रित पीरा का विस्तार है
    ऐसे जात पाँत के हेरेफेरे, अब दूर प्रेम-मनुहार- है
    पद प्रतिश्ठा मानस से ऊपर, हुयी रिश्तों की लय बीमार है
    अपने अपने स्वार्थ में उलझे, ओझल अपनापन और प्यार है
    फागुन में हुआ फाग नदारत , हम ढंढे बसंत बहार है
    तो कैसे मने रे होली अबकी, जनता सत्ता से लाचार है
    Photoकैसे मने रे होली अबकी, जनता सत्ता से लाचार है
    महँगाई में हर रंग है फीका , जबकि होली रंगों का त्यौहार है
    हर तरफ़ है हंगामा बरपा, पैने कानूनों की धार है
    नय्रे कानूनों में बाँध दिया, प्रतिबंधित छेड़छाड़ है
    यह विकृत समाज की देन है भइया, अब कुछ कहना बेकार है
    फैली लज्जा शर्म की खबरे, नित होते दुराचार है
    छेड़छाड़ रंगों के उत्सव से, मौज मस्ती दरकिनार है
    कैसे मने रे होली अबकी, जनता सत्ता से लाचार है
    हुआ लाल गुलाबी रंग नदारात, छाया रंग काला भ्रष्टाचार है