ऊँचे मकानों से निकाल कर मुझ पर हँसने वालों,
मुझ पर
बेघर कहं कर यू फब्बतिया कसने वालो,
जाने
क्यू तुम्हे ईट पत्थरो के मक़ाँ पे इतना गुमान है,
गौर से देखो तो मेरी छत सारा का सारा आसमान है,
होंगे तुम्हारे महल रोशन पर चिराग घिरे उम्र के
सवालों से,
जबकि
मेरी छत रोशन है अनगिनत अजर अमर सितारों से,
मैंने
चाँद का गुमान कभी चहरे पर आने ही ना दिया,
और तुम्हे
फक्र है उस रौशनी का जो आज बूझता सा दियाँ,
तंग मकानों से निकल कभी खुली हवा से दिल गुलजार
करो,
है जमाने
से दोस्ती अच्छी, जिंदगी अकले ही यू बेकार न करो,
तमाम
उम्र खुद के साथ ही दिन रात बिताने वालो,
आज अपनी
ही हँसी पर न खुल के हँसने वालो,
तुम्हे
तुम्ही से मिलने को रोकता तुम्हारा दिल-ए फरमान है,
ह्म्हारी
छोड़ो हम्हारे दिल में तो सारा का सारा जहान है
ऊँचे
मकानों से निकाल कर मुझ पर हँसने वालों,
मुझ पर
बेघर कहं कर यू फब्बतिया कसने वालो,
जाने
क्यू तुम्हे ईट पत्थरो के मक़ाँ पे इतना गुमान है,
गौर से देखो तो मेरी छत सारा का सारा आसमान है,
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