Thursday, May 30, 2013

रंग नफरत का


धरती के रंगों में घुला रंग नफरत का
और दूर हुआ मन से नशा मुहब्बत का
कभी गलियों में होता था रंग का हुड़दंग
 सर पर चड़ बोलती थी तबीयत की भंग
 अब साथ में त्यौहार भला कैसे मनाये
 जकड़ी हुई देखो धर्मो की झूठी मान्यताये
जाने कहा लुप्त हुयी प्रेम भरी आस्थाये
 मन की तसल्ली को कलफी कामनाये
 रोकती जो टोकती प्यार की ठिठोली
 अब तो बस यादों में बसती है होली
अबीर और गुलाल भरी बच्चो की झोली
 जातपात भुलभाल मस्तों की टोली
 यौवन में डूबी वह सुरतिया भोली भोली
 काश बीते दिन आते और बहती फुआर
 फिर से संग साथ की, चलती बयार
 आपसी रंजिशो का न होता प्रहार
 तो होली तो होली, मनता हर त्यौहार
  1. ...

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