Thursday, May 30, 2013

विद्रोह करो विद्रोह करो…

  1. अन्याय को सहना अब आदत है
     बिन माँगें मौत शहादत है
     यूँ तेरा अपने ही अपने में रहना 
    दिल से दिल की बात ना कहना 
    क्यू अपने ही जज्बातो पर पहरे 
    अरमानो के रस्ते ठहरे ठहरे 
    धुलते मिटते क्यू ख्वाब सुनहरे 
    और स्थिल सब जीवन के फेरें 
    जीवन की आशा कोई गुनाह् नहीं 
    पर बिन तेरे नवजीवन का प्रवाह नहीं
     मौन अधर को अवसर कब होगा 
    कब तेरा हृदय भी अग्रसर होगा 
    विच्छिप्त मन को अब शांत करो
     कुंठित तन में नवकेतन कांत भरो 
    खुल कर कहना विद्रोह नहीं 
    हा घूँट कर रहना आरोह नहीं
     तो जो उचित लगे बस वोह करो
     सहने की परिपाटी बदलो 
    विद्रोह करो विद्रोह करो……………
    1. ...

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