- अन्याय को सहना अब आदत हैबिन माँगें मौत शहादत हैयूँ तेरा अपने ही अपने में रहनादिल से दिल की बात ना कहनाक्यू अपने ही जज्बातो पर पहरेअरमानो के रस्ते ठहरे ठहरेधुलते मिटते क्यू ख्वाब सुनहरेऔर स्थिल सब जीवन के फेरेंजीवन की आशा कोई गुनाह् नहींपर बिन तेरे नवजीवन का प्रवाह नहींमौन अधर को अवसर कब होगाकब तेरा हृदय भी अग्रसर होगाविच्छिप्त मन को अब शांत करोकुंठित तन में नवकेतन कांत भरोखुल कर कहना विद्रोह नहींहा घूँट कर रहना आरोह नहींतो जो उचित लगे बस वोह करोसहने की परिपाटी बदलोविद्रोह करो विद्रोह करो……………
जीवंत सच्चाइया जिन्हें देख कर भी हम अनदेखा कर देते है उन्हीं सच्चाइयो के झरोखे में झाँकने को मजबूर मेरा मन और उस मन कि व्यथा अपने ही जैसों को समर्पित करना ही मेरा उद्देश्य है, और मेरा निवेदन है कि मेरी सोच में जो अधुरापन रह भी गया है उस पर आप लोगो की कीमती टिप्पणी यदि समय समय पर मिलती रहे तो शायद कोई सार्थक तत्व समाज कि जागरूकता में योगदान दे सके!
Thursday, May 30, 2013
विद्रोह करो विद्रोह करो…
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