हर किसी से नफरत हर किसी से बुराई
जिंदगी जाने किस मोड़ पर चली आई
भरोसे की उठी मइयत, हाथों में जुदाई
आग जो भड़की वह हमने ही थी लगाई
कौन दे सहारा जब हुआ दिल ही हरजाई
एक दूजे को दफनाने की कसम जो खाई
झूठी मोहब्बत कि दिल ने रसमें निभाई
अकेलेपन की जिंदगी न जाने क्यो भाइ
क्योँकि अकेलेपन की जिंदगी न हमको भाइ
न अकेलेपन की जिंदगी न तुमको भाइ
फिर भी गंदी सियासत की करी कराई
पर हमने और तुमने मुहर है लगाइ
नतीजा..............
हर किसी से नफरत हर किसी से बुराई
जिंदगी जाने किस मोड़ पर चली आई.............
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