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जीवंत सच्चाइया जिन्हें देख कर भी हम अनदेखा कर देते है उन्हीं सच्चाइयो के झरोखे में झाँकने को मजबूर मेरा मन और उस मन कि व्यथा अपने ही जैसों को समर्पित करना ही मेरा उद्देश्य है, और मेरा निवेदन है कि मेरी सोच में जो अधुरापन रह भी गया है उस पर आप लोगो की कीमती टिप्पणी यदि समय समय पर मिलती रहे तो शायद कोई सार्थक तत्व समाज कि जागरूकता में योगदान दे सके!
Thursday, May 30, 2013
दामनी का केस
दामनी का केस कितना लम्बा चलेगा
और ................
क्या फैसला आयेगा सब राम भरोसे है
क्यूँकि........
तमाम दिन इंतज़ार में बीते
पर इम्तहान बरबादी था
अपने हक में होगा फैसला
सोचना ही जल्दबाजी था
निगाहे लाख टिका लो उम्मीद पर
पर मामला बुनयादी था
चलती सियासत की हरदम
फिक्र किसे कब आबादी का
हर आवाज़ दब जाती समय के साथ
अब आदत हुयीं नाकामी का
और ................
क्या फैसला आयेगा सब राम भरोसे है
क्यूँकि........
तमाम दिन इंतज़ार में बीते
पर इम्तहान बरबादी था
अपने हक में होगा फैसला
सोचना ही जल्दबाजी था
निगाहे लाख टिका लो उम्मीद पर
पर मामला बुनयादी था
चलती सियासत की हरदम
फिक्र किसे कब आबादी का
हर आवाज़ दब जाती समय के साथ
अब आदत हुयीं नाकामी का
आवाज़ दो अंतर्मन को
आवाज़ दो अंतर्मन को
जो शांत किसी गुमसुम की तरह,
जो दबा के बैठा अपनी टीस को,
आवाज़ दो उस अंतर्मन को
किस लिए यह मौनता
किस लिए कर्ण और जीभा पर,
किया आमंत्रण विराम को,
कि उपस्तिथि रही नाम को
तोड़ो निरंतर इस चुप्पी को
और आवाज़ दो अंतर्मन को
जो है विराजमान हृदय में
उस विकट झंझावर को
अब तो कुछ विराम दो
जब तक चुप्पी टूटेगी नहीं
तब तक अनियंत्रित दर्द और वेदना
कुरेदगी भीतरी इनसान को
और खत्म हो जाएगी लालसा
स्थापित करने अपने ही सम्मान को
इस लिए चुप्पी को विराम दो
और आवाज़ दो अंतर्मन को
जो दबा के बैठा अपनी
दर्द वेदना और टीस को,
जिंदगी किस मोड़ चली आई.
हर किसी से नफरत हर किसी से बुराई
जिंदगी जाने किस मोड़ पर चली आई
भरोसे की उठी मइयत, हाथों में जुदाई
आग जो भड़की वह हमने ही थी लगाई
कौन दे सहारा जब हुआ दिल ही हरजाई
एक दूजे को दफनाने की कसम जो खाई
झूठी मोहब्बत कि दिल ने रसमें निभाई
अकेलेपन की जिंदगी न जाने क्यो भाइ
क्योँकि अकेलेपन की जिंदगी न हमको भाइ
न अकेलेपन की जिंदगी न तुमको भाइ
फिर भी गंदी सियासत की करी कराई
पर हमने और तुमने मुहर है लगाइ
नतीजा..............
हर किसी से नफरत हर किसी से बुराई
जिंदगी जाने किस मोड़ पर चली आई.............
गुनाहगार
असली में जो गुनाहगार है
वही सिपहलसार है
किसकी नियत तलाशिये
सबके सब बीमार है
सरफरोशी चले गए
अब हमवतन भी लाचार है
सब अपनी अपनी कहते है
दूजे की दुश्वार है
बीते दिन जब चाँदनी के
तो अब अंधेरी रात है
तेरे मेरे में सिमट गयी
ये अपनेपन की बात है
कौम बड़ी इंसानियत छोटी
फीके हर जज्बात है
छुरे और तमंचे थामे,
जुदा एकदुजे के हाथ है
कौन कहे लोग वही
जिनका चोली दामन साथ है
बीते दिन जब चाँदनी के
तो अब अंधेरी रात है
असली में जो गुनाहगार है
वही सिपहलसार है
किसकी नियत तलाशिये
सबके सब बीमार है
वही सिपहलसार है
किसकी नियत तलाशिये
सबके सब बीमार है
सरफरोशी चले गए
अब हमवतन भी लाचार है
सब अपनी अपनी कहते है
दूजे की दुश्वार है
बीते दिन जब चाँदनी के
तो अब अंधेरी रात है
तेरे मेरे में सिमट गयी
ये अपनेपन की बात है
कौम बड़ी इंसानियत छोटी
फीके हर जज्बात है
छुरे और तमंचे थामे,
जुदा एकदुजे के हाथ है
कौन कहे लोग वही
जिनका चोली दामन साथ है
बीते दिन जब चाँदनी के
तो अब अंधेरी रात है
असली में जो गुनाहगार है
वही सिपहलसार है
किसकी नियत तलाशिये
सबके सब बीमार है
रंग नफरत का
धरती के रंगों में घुला रंग नफरत का
और दूर हुआ मन से नशा मुहब्बत का
कभी गलियों में होता था रंग का हुड़दंग
सर पर चड़ बोलती थी तबीयत की भंग
अब साथ में त्यौहार भला कैसे मनाये
जकड़ी हुई देखो धर्मो की झूठी मान्यताये
जाने कहा लुप्त हुयी प्रेम भरी आस्थाये
मन की तसल्ली को कलफी कामनाये
रोकती जो टोकती प्यार की ठिठोली
अब तो बस यादों में बसती है होली
अबीर और गुलाल भरी बच्चो की झोली
जातपात भुलभाल मस्तों की टोली
यौवन में डूबी वह सुरतिया भोली भोली
काश बीते दिन आते और बहती फुआर
फिर से संग साथ की, चलती बयार
आपसी रंजिशो का न होता प्रहार
तो होली तो होली, मनता हर त्यौहार
मुझ पर हँसने वालों,
ऊँचे मकानों से निकाल कर मुझ पर हँसने वालों,
मुझ पर
बेघर कहं कर यू फब्बतिया कसने वालो,
जाने
क्यू तुम्हे ईट पत्थरो के मक़ाँ पे इतना गुमान है,
गौर से देखो तो मेरी छत सारा का सारा आसमान है,
होंगे तुम्हारे महल रोशन पर चिराग घिरे उम्र के
सवालों से,
जबकि
मेरी छत रोशन है अनगिनत अजर अमर सितारों से,
मैंने
चाँद का गुमान कभी चहरे पर आने ही ना दिया,
और तुम्हे
फक्र है उस रौशनी का जो आज बूझता सा दियाँ,
तंग मकानों से निकल कभी खुली हवा से दिल गुलजार
करो,
है जमाने
से दोस्ती अच्छी, जिंदगी अकले ही यू बेकार न करो,
तमाम
उम्र खुद के साथ ही दिन रात बिताने वालो,
आज अपनी
ही हँसी पर न खुल के हँसने वालो,
तुम्हे
तुम्ही से मिलने को रोकता तुम्हारा दिल-ए फरमान है,
ह्म्हारी
छोड़ो हम्हारे दिल में तो सारा का सारा जहान है
ऊँचे
मकानों से निकाल कर मुझ पर हँसने वालों,
मुझ पर
बेघर कहं कर यू फब्बतिया कसने वालो,
जाने
क्यू तुम्हे ईट पत्थरो के मक़ाँ पे इतना गुमान है,
गौर से देखो तो मेरी छत सारा का सारा आसमान है,
प्यार की कशिस
तुम्हारे प्यार की कशिस में
मै इस
कदर मदहोश हूँ
की जिंदगी
की आंखरी साँस तक
होश में
आना नहीं चाहता,
तुम्हारे
शब्दों में पिरोये हुए
अपनेपन
के अनमोल मोती,
जिन्हें बेशकीमती जवाहरात की तरह
मै ता-जिंदगी
खोना नही चाहता,
थकान
और शिकन के पलों में
तुम ताजगी
और ताकत हो
सफर के
किसी मोड़ पर हमदम
मै तुम्हे
खोना नही चाहता,
आज वादा
करे एक दुसरे से
आँखों
में एक ही सपना हो
जिसमे
तेरी खुशी न हो शामिल
वह स्वप्न सँजोना नही चाहता
तुम प्यार
हो, तुम अनमोल हो
हां तुम
ही मेरी चाहत हो
हर जन्म तेरा ही साथ मिलें
अब दिल
किसी और का होना नहीं चाहता………………….
तुम्हारी याद
वक्त बेवक्त तुम्हारी याद
मुझे
तड़पाती रुलाती तेरी याद
तुम्हे
भी आती होगी कभीकभी
भूली बिसरी पर मेरी याद
मै लिखता तेरा नाम
अनगिनत कोरे कागज पर
पर आँखों
से बहते आँसू,
फिर कोरे के कोरे करते,
बह जाते
हर अक्षर के साथ
और रह
जाती बस तेरी याद,
नींद
कभी की ओझल है
मन कि
दशा कहूँ क्या आज
सोते
जागते मन में बसती
प्रिय
विरह कि निष्ठुर याद,
तुम किस
कारण बँधी हुयी
इसका मुझे अन्देशा नहीं
पर मन मेरा यह कहता है
मन तेरे भी बसी हुयीं है मेरी याद……………….
ऐ पवन मेरा संदेश देना
ऐ पवन मेरा संदेश देना
और…….
उनकी
भी खुश ख़बर लेना
ऐ मंद
बहती पवन
अपने साथ तुम समेट लेना
महक उनके एहसास की
मेरे प्रिय के आस पास की
मै अकेलेपन से जीत जाऊ
अगर उनका शुभ संदेश पाऊ
तो लौटती पुरवाई में
मुझे यह उपहार ख़ास देना
वतन कि उम्मीद है हमसे
अभी वक्त
माटी को देना है
कफन सर पर बाधा है
पर हृदय में उनके प्यार का गहना है
माना अभी जिस्म कि दूरी है
पर दिल
में सदा उनको ही रहना है
मेरे
स्वप्न, मेरी सोच, मेरी अनभूति
प्रारंभ भी उनसे और अंत भी उनसे
प्रकृति कि दूरियां भी न कर सके दूर
मेरी यादो का तुम हवाला देना
अपने भीने पवन के झोको से
उनके भीगे नयनो को सुखा देना
मै जल्दी वापस आउंगा
उनकी
आँखों में यह खुशी का
मिलनमय
एहसास देना
ऐ मंद
बहती पवन
मेरा यह संदेश देना
और
……………
उनकी
भी खुश ख़बर लेना
“हिदी है हमवतन है
मजहब नही सिखाता आपस में बैर रखना”
“हिदी है हमवतन है हिंदोस्ता हम्हारा हम्हारा”
लौट के आ जाए अगर बीते दिन
फिर से मिल जाए अगर हिंदू मुस्लिम
जिंदगी फिर खुली साँस ले हवाओं में
अगर घुल जाए मोहब्बत फिजाओ में
अमन और चैन की बाते सिमटी यादों में
क्यू नफरते पनप गयी इस कदर इरादों में
इस दिल की तलाश कब मुकम्मल होगी
जिंदगी को हर जिंदगी में कब मुहब्बत होगी
हमारी खुशी हो और तुम भी हो शामिल
मुझे भी साथ लेने के जब समझो काबिल
इतिहास दोहराये मिला कदम से कदम
हैरान कर दे फिर से पूरब और पश्चिम
आमीन ऐ खुदा दुआ कबूल कब तेरे बिन
तू ही दूर सकता रिश्तों कि हर उलझन
तो लौटा दे हम्हे वह बीते हुए दिन
जब मिल जाए ज़ुदा दो भाई हिंदू मुस्लिम
आमीन..............
माँ तुझे कोटी कोटी प्रणाम
हे माँ तुझे कोटी कोटी प्रणाम, हर दिवस करु मै बस तेरे नाम
मात् दिवस प्रतिदिन इन रगो में बहता, एक दिवस भी नहीं विराम
क्युकि………………
नौ माह कि अपार प्रसव पीड़ा , और मन भीतर जीवन देने का बीड़ा
माँ हर दर्द सहेज कर भी, तुने ही मुझमे साँसें भर दी
अपने जीवन का प्रथम अध्याय, हम तेरे ममतामयी शब्दों से पाये
माँ विधयालय की तू प्रथम चरण, तेरे स्नेह से हुआ पालन पोषण
मेरी खुशियों में जो ढूँढे ख़ुशियाँ, तुने जीवन पर्यंत बस दिया दिया
माँ मुझमे तेरे ही अनमोल संस्कार, जो कर रहे आज भी परम उद्धार
ईश्वर का जीवंत स्वरूप है तुझमें, क्यूँकि तुझसे ही साँसें है मुझमे
माँ तेरी आँखों में मै पला बढ़ा, हे जीवन दायनी मै तेरा कृतार्थ बड़ा
माँ उपरांत नौ माह कि प्रसव पीड़ा, से उपज यह अलख संसार बना
माँ तेरी ममता का कोइ मोल नहीं, ममता के ऋण का जग में तोड़ नही
क्युकि………………
नौ माह कि अपार प्रसव पीड़ा , और मन भीतर जीवन देने का बीड़ा
जीवन मृत्यु के मध्य उपजती, माँ की आँखों में संतान है बसती
हे माँ तुझे कोटी कोटी प्रणाम, हर दिवस करु मै बस तेरे नाम
मात् दिवस प्रतिदिन इन रगो में बहता, एक दिवस भी नहीं विराम………….
Happy Mother’s day (365Day)
महामंडित मार्तदिवस करदो
माँ के कर्ज़ में तो डुबा यह सारा का सारा संसार है!
माँ ही है जिसने दिया बिना ब्याज प्यार ही प्यार है!
धरती पर जीवन की अमिट धारा बहाने वाली
कैसे बनी बेटा और बेटी के अन्तर को लजाने वाली
इस दिवस पर इस मनन कि भी आज जरूरत है
माँ तो माँ है उससे तो बेटा बेटी दोनों को मोहब्बत है
क्यू बेटी कहती मा मुझे भी इसी कोख में जनने दो
नौ मास की अवधि में परिपक्वता से पलने दो
जीवन पाई तो मै भी संसार रचयिता कहलाउंगी
वर्ना भ्रूण परिक्षण पश्चात नाहक बलि चढ़ जाऊँगी
माँ मेरी भी सांसो में साँसें भर दो
है अभी सूनी शिराये रगो में लहू भर दो
अनमोल दिवस की बेला पर मेरी माँ
मेरा भी महामंडित मार्तदिवस करदो
विद्रोह करो विद्रोह करो…
- अन्याय को सहना अब आदत हैबिन माँगें मौत शहादत हैयूँ तेरा अपने ही अपने में रहनादिल से दिल की बात ना कहनाक्यू अपने ही जज्बातो पर पहरेअरमानो के रस्ते ठहरे ठहरेधुलते मिटते क्यू ख्वाब सुनहरेऔर स्थिल सब जीवन के फेरेंजीवन की आशा कोई गुनाह् नहींपर बिन तेरे नवजीवन का प्रवाह नहींमौन अधर को अवसर कब होगाकब तेरा हृदय भी अग्रसर होगाविच्छिप्त मन को अब शांत करोकुंठित तन में नवकेतन कांत भरोखुल कर कहना विद्रोह नहींहा घूँट कर रहना आरोह नहींतो जो उचित लगे बस वोह करोसहने की परिपाटी बदलोविद्रोह करो विद्रोह करो……………
एक नयी रचना मै आपके नाम कर दूं
लिखने को जब मिला कुछ भी नही
मन के किसी कोने में खयाल आया तभी
चलूँ कुछ विचार बाहर से ले आऊ
और उन्हें शब्दों का जमा पहनाऊ
दिखी सुनहरी शाम में विचरती फैशन की दुनिया
क्लब के कल्चर में ढली नवोदित जिंदगियां
शराब और शबाब के बीच की पनपती गंदगिया
घुटते रिश्ते जहा दौलत और शोहरत के दरमिया
कोयला, रेल , घोटालों, चुनाव और जाने क्या क्या
निकममी शासन और सत्ता कि दिखी हर बड़ी हस्तियां
ना मिलें वह् पुराने गुलमोहर के गुच्छे
वह कागज कस्ती को खेलते हुए बच्चे
ना मन्दिर कि घंटी न मस्जिद कि आँजने
वह् पुरानी गली मोहल्ले के ताने और बाने
हम्हारी यादों में थे जो गुजरे जमाने
वह् चाह के भी न मिलें ठौर ठिकाने
सच्चाई कि जगह लव्जो में पलते बहाने
देख् घर को वापस मै आया
कुछ न मिला जिसे खुशियों में लिख दूं
एक नयी रचना मै आपके नाम कर दूं
हमसफर तुझे पाकर
मेरे कदमो ने चुनी कुछ राहे
वजूद तब हो जब तू भी आए
हमसफर तुझे पाकर मंजिले मिल जायेंगी
दूरियां कितनी भी हो मुश्किलें कट जायेंगी
वक्त के साथ मैंने कुछ लम्हे चुराये
हासिल तब जब तू साथ वक्त बिताये
तेरा साथ हो तो सदिया भी कट जायेंगी
वक्त के हाथ से तन्हाईयाँ फिसल जायेंगी
कल कि तसवीर के खाखे है बनाए
वह् तस्वीर हो मुकम्मल तू जो आए
किस्मत की रोशन लकीर, हथेलियां पा जायेंगी
एक तेरे आने से किस्मत बदल जायेगी
कितने ही ख्वाब आँखों में सजाये
मेरी आंखो में बसी तेरी ही सदाये
तुम्हारी बंद पलके जब ख्वाब असल कर जायेंगी
तब खुली आँखें भी हँसी सपनों को जी पायेंगी
इंद्रधनुश ने जो सात रंग है बिखराये
उनमे अगर तेरा रंग भी मिल जाए
तो बेरंग सी इस जिंदगी में रंगीनियां छा जायेगी
जिंदगी कि हर सुबह रात सज सँवर हो जायेगी
तेरा साथ हो तो सदिया भी कट जायेंगी
एक आवाज़
एक आवाज़ जो तुम्हारे हाल को पूछें
एक कदम जो हरदम तेरा साथ दे दे
एक बात जो अपनेपन का एहसास दे
उस तलाश के कठिन से कठिन फ़ासले
तय करने को जब दिल तेरा आमादा हो
ख़ुद से उस अजनबी पर भरोसा ज्यादा हो
जिसे न देखा बस ख्यालो में क़रीब पाया
अनजान से चहरे में हमसाया सा पाया
इस भीड़ में किस मोड़ पर होगी मुलाकात
तलाश में गुजरेंगी कितनी सुबह कितनी रात
मायने नहीं रखती जिसके खातिर कोई बात
बस दिलो के तार और उमड़ते जज़्बात
एक अजनबी से आतुर करने को मुलाकात
यह उम्र की दहलीज़ पर उमगों की सौगात
जो ढूँढती है....
एक आवाज़ जो तुम्हारे हाल को पूछें
एक कदम जो हरदम तेरा साथ दे दे
एक बात जो अपनेपन का एहसास दे
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