जीवंत सच्चाइया जिन्हें देख कर भी हम अनदेखा कर देते है उन्हीं सच्चाइयो के झरोखे में झाँकने को मजबूर मेरा मन और उस मन कि व्यथा अपने ही जैसों को समर्पित करना ही मेरा उद्देश्य है, और मेरा निवेदन है कि मेरी सोच में जो अधुरापन रह भी गया है उस पर आप लोगो की कीमती टिप्पणी यदि समय समय पर मिलती रहे तो शायद कोई सार्थक तत्व समाज कि जागरूकता में योगदान दे सके!
Friday, August 24, 2012
Monday, August 13, 2012
यत्न प्रयत्न का अंत न हो
- यत्न प्रयत्न का अंत न हो
जबतक विजय जीवंत न हो
तुम लगे रहो तुम डटे रहो
पुरूषार्थ मार्ग पर बने रहो
जीवन तो है कठोर तपस्या
अशक्त न हो देख् समस्या
...बिना कर्म के प्रभुत्व कहा
दुर्बल निर्बल का महत्व कहा
कर्मठ मानुस तो हार नही
साहस बिन जीवन पार नहीं
इच्छित लक्ष्य से साक्षात्कार नहीं
विकट विपदाओं का निस्तार नहीं
हो मात्र आस् परंतु प्रयत्न न हो
स्व:इच्छाओं का किंचित तत्व न हो
आत्म शक्ति पर अधिपत्य न हो
निरी योजना पर योग्य क्रत्य न हो
तो संघर्षों भरा जीवन पार नहीं होता
दाँव पैच से जीवन में श्रंगार नहीं होता
कटुसत्य अनुकम्पा से जीवन पार नहीं
बिन कर्म किए अचल अचर उद्धार नही
निकम्म को अकर्म का पुरुस्कार नहीं
परंतु यदि हो तेजस्वी तो तिरस्कार नही
सघन विवश्ता से किले विध्वंश न हो
जब तक धनुधर के अंकित अंश न हो
तो हे मानुस लगे रहो तुम डटे रहो
है जटिल घड़ी वज्र समान तने रहो
यत्न प्रयत्न का अंत न हो
जबतक विजय जीवंत न हो
आजादी की बंदरबाँट
- अरे भाई जब से हुयी है शादी तब से ही खड़ी खाट है
और आज उसी खड़ी खाट कि आठवीं वर्षगाँठ है
हर समय नजर उनक़ी और आजादी की बंदरबाँट है
जमाने में चलती मेरी पर घर में हर बात की काट है
क्योँकि मियां तो बीबी के आगे एक रिजेक्टेड लाट है
यह तो घर घर ...की कहानी है न जाने क्यू मन उचाट है
अविवाहितो से होती जलन जिनके अभी तलक ठाठ है
एक हम जिसकी आज शादी की आठवीं वर्षगाँठ है
क्योँकि जब से हुयी है शादी तब से ही खड़ी खाट है
तुम याद आए
- गीत लबो ने जो गुनगुनाये
तो तुम याद आए
हुयीं नाकाम हर सदाये
पर तुम नहीं आए
अश्क आँख में जब आए
हम इस उम्मीद से नहाये
...की जो तेरी याद में आए
उसे कैसे पी जाए
ये सोच समंदर बहाये
पर तुम नहीं आए
अजब उदासियो के साये
पर इश्क न लड़खराये
रहे नजरों को हम बिछाये
ख्वाब बुनती यह निगाहें
हर सदा निहारती राहे
पर तुम नहीं आए
गीत लबो ने जो गुनगुनाये
तो तुम याद आए
आँख
- इन आँखों ने देखे मंज़र बहुत
कभी आँखें थी मेरी कभी आँखें थीं तेरी
इन्हीं आँखों में पलते सपने बहुत
कभी डबडबाई तेरी कभी डबडबाई मेरी
टूटे जो सपने कभी जब अपने
आँखों को खलती निराशित परछाई
...मन्शा नहीं था दिल को दुखाना
पर आँखों का तो है काम दिखाना
दर्द कि सतह या खुशी का ठिकाना
आँखें भला करे क्या बहाना
मजबूर आँखें क्या मेरी क्या तेरी
इन आँखों ने देखे मंज़र बहुत
कभी आँखें थी मेरी कभी आँखें थीं तेरी
चरित्र की शहादत
- खूबसूरती दिखावे फैल्सुफी की आदत
के चलते ही हुयीं चरित्र की शहादत
सच ही सुनी हमने पुरानी कहावत
नए मुल्ले को होती प्याज की आदत
पहचान भूलें विरासत से मुँह मोड़ा
फैशन की दौड़ में पहचान को छोड़ा
...कितने ही अपनो का दिल है तोड़ा
दिखावा हुआ ख़ुद के जीवन का रोड़ा
मिटने को तस्वीर मिटाने को तबीयत
जाने यह कैसी हम इंसाँ कि नीयत
कि अपनयी हमने यह गंदी आदत
जिसके चलते ही हुयीं चरित्र की शहादत
कब्र अपनी खोदी तो कैसी शिकायत
काली रातों में उजाले कि कैसी चाहत
सच ही सुनी हमने पुरानी कहावत
नए मुल्ले को होती प्याज की आदत
तेरा इंतज़ार
- यह नजर आज भी बस तेरा इंतज़ार करे
सनम जिंदगी जीने को तुझसे इजहार करे
देर न हो जाए घड़िया हर पल बेहाल करें
गमगीन तबीयत खंजर सा सीने के पार करे
हद क्या थी क्या पता दिल तो बस प्यार करें
शूल सी चुभती सर्द रातें, देह में अंगार भरे
...कहूँ क्या शबनम तेरे नाम की दिल बेजार करें
यह नजर आज भी बस तेरा इंतज़ार करे
सनम जिंदगी जीने को तुझसे इजहार करे
सफर की शुरुवात
- सफर की शुरुवात और तुम थक गए
ज़िदगी के पहले पड़ाव पर छक गए
दौड़ अभी बाकी है तुम्हें चलना ही होगा
विश्वास कि डोर थाम कुछ करना ही होगा
जिंदगी में हासिल कब मौत भी आसानी से
और मौत को कब पनाह लंबी जिंदगानी से
...कल होगा वही जो चाहा जो किया जो सोचा
किया नहीं तो तक़दीर को उस पर क्या कोचा
बदलते माहौल में बदलने को तू अभी बाकी है
जीत हार के पन्नो पर तेरी करनी ही बाकी है
तो किस हाथ की करें प्रतिछा तेरा साथ बाकी है
क्रांति बिगुल बजा बस तेरा ही स्वर बाकी है
चलो नौजवां किस उधेड़बुन में तुम लग गए
सफर की शुरुवात और तुम थक गए
- आज बाहों में यु ही समाये रहो
कुछ मेरी सुनो कुछ अपनी कहो
दर्द बहुत है सनम इस जमाने में
सुकून मिलता प्यार के खजाने में
मोहब्बत का जुनून कभी कम न हो
वक्त बेवक्त कि जब तुम न हो
...मेरी जिंदगी के वजूद सनम तुम होSee more
मेरे इर्दगिर्द तुम मस्त हवाओं सा बहो
आज बाहों में यु ही समाये रहो
कुछ मेरी सुनो कुछ अपनी कहो
तुम्हारी सौगात
- हर बात अधूरी है
हर रात अधूरी है
जिंदगी जज़्बात के बिन
सनम बड़ी अधूरी है
मेरे सुने से दिल में
तुमने ही भरे रंग
...हर खुशी हर उमंग
सनम तुमसे हर तरंग
लबों पर मुस्कान
तुम्हारी ही है सौगात
तुमसे ही रोशन रात
क्या सुबह क्या शाम
तुमसे जदगी का एहतराम
तुम मिलें तो मिटी हर दूरी
वरना..........
हर बात अधूरी है
हर रात अधूरी है
हारने में मजा
- सोचो किसी को हारने में
कब मजा आता है
पर यह दिल जब किसी के
हवाले हो जाता है
तो दिल के हाथों
दिल हारने में मजा आता है
...हार का खुशनुमा वक्त
जब जिंदगी में आता है
हाथों में हाथ लिए
दोनों हार का जश्न मनाते है
इस मुहब्बत में तो
हारने वाले भी जीत जाते है
प्यार की हर चाल
जिंदगी को लुभाती है
यही वह बाज़ी है जो
हार के भी जीती जाती है
हर खुशी वही जहां मुहब्बत आबाद
ऐ मुहब्बत तू जिंदाबाद
जिंदाबाद जिंदाबाद जिंदाबाद.....
- सोचो किसी को हारने में
कब मजा आता है
पर यह दिल जब किसी के
हवाले हो जाता है
तो दिल के हाथों
दिल हारने में मजा आता है
...हार का खुशनुमा वक्त
जब जिंदगी में आता है
हाथों में हाथ लिए
दोनों हार का जश्न मनाते है
इस मुहब्बत में तो
हारने वाले भी जीत जाते है
प्यार की हर चाल
जिंदगी को लुभाती है
यही वह बाज़ी है जो
हार के भी जीती जाती है
हर खुशी वही जहां मुहब्बत आबाद
ऐ मुहब्बत तू जिंदाबाद
जिंदाबाद जिंदाबाद जिंदाबाद.....
हिमालय बिखर रहा
- शाख सूखी सी पड़ी मैदानों में
ढुंढ़ती हरियाली जो हो बहारो की तरह
यह बुलंद हिमालय बिखर रहा
ताश के पत्तो की तरह
मीनारों ने जमी छोड़ी
ढ्ह गयी कोरी रेत की दीवारों कि तरह
...कल तलक जहां हिमगिरि थी
बह गयी आज नालों की तरह
कौन कहता है धरती कोहनुर है मेरी
अब चिटकती है काँच के प्यालों कि तरह
कल मधु टपकता था जुबां में
आज चुभता है गलियों कि तरह
दौड़ इतनी चली हमने
छोड़ी दीं विरासत गैरो की तरह
जिसे कहते है तरक्की यारों
आज लगती मौत के गलियारों कि तरह
ते़ज लहरों में भटकीं नाव जैसे
बिना माझी बिना पतवारो की तरह
शाख सूखी सी पड़ी मैदानों में
ढुंढ़ती हरियाली जो हो बहारो की तरह
प्यार के भँवर
- यह क्या जिसके लिए मिटे
उसे पता भी न चला
जो दर्द दे गया जीवन भर का
उस से कर ना सके कोई गिला
प्यार के भँवर में
हम डूबे भी
...तड़पे भी
दर्द की टीस जो अभी बाकी है
झेले हम और खता कहा की है
बता भी न सके
हाले दिल सुना भी न सके
वह् अपनी खुशी में शामिल
जब हम खुदखुशी में शामिल
कैसा नायाब प्यार का तोहफा है
कि जिंदगी ख़ुद से कहे तोबा है
बिखरते हालत और हम अकेले
क्या कहे उन्हें पता भी न चला
और हुआ हशारा की जिसके लिए मिटे
उसे पता भी न चला !
बीज नफरत के, भूख के, सियासत के
- धरती की गोद में बो दिए है बीज
नफरत के, भूख के, सियासत के
चिंगारी भड़का दी तुमने जालिम
इस वहशी जात पाँत के दंगों से
भर दिया तुमने इस धरा का दामन
गहराई तक झगड़ों की कबायत से
...इतने उलझ गए हम सारे की
निकल न सके तुम्हारी सियासत से
यह ऐसी वैसी चल नही कि गोया
की कोई भला समझे आसानी से
रोजी रोटी में तक मुश्किल हो गयी
आज फाके पड़े आज कंगाली से
रैन बसेरे को तरसे यह जीवन
घड़िया बीते कुंठा और बदहाली से
किस भारत का सपना था देखा
क्या हालात बनाए तुमने दुश्वारी से
धरती की गोद में बो दिए है बीज
नफरत के, भूख के, सियासत के
सियासत की गंदगी
- यह आरती की लौ थी
जिसे तुमने आग का नाम दिया
जिन्होंने बाहर कि दुनिया न देखी
उन्हें यु ही बदनाम किया
सुनी तुम्हारी ही जाती है
इस बावस्ता तुमने बेशर्मी अंजाम दिया
...सियासत की गंदगी हो तुम
तुमने देश को हर ओर नाकाम किया
मुकाबले को तो ह्म आए थे
तूने नजदीकियों को कत्लेआम किया
कब दूरियां घर कर गयी
पता भी न चला वह काम किया
ह्म्हारी कमजोरी है गर्मजोशी
तुमने जला के काम तमाम किया
हर बार ठगे जाते है हम
कभी जात कभी भाषा से कलाम किया
चुनते भी हम्ही किलसते भी हम्ही
की नेताओं ने जीना हराम किया
सियासत की गंदगी हो तुम
तुमने देश को हर ओर नाकाम किया
जिज्ञासा जानने की
- खो गयी कहीं यह ज़िदगी
ढूँढता फिर रहा मै पूरी जिंदगी
अंतहीन है या कभी हल होगा
इस दर्द का क्या कभी अंत होगा
जिज्ञासा जानने की तुमको भी
पीड़ित प्रतिछा मुझको भी
...कब थमेगा आंधियो का दौर भाई
कब तक सहेंगे बेवजह की जगहँसाई
लोग हारने लगे है उम्मीदों से
गिले शिकवे रहे अब जिंदगी से
कि जिंदगी सिवा दर्द कुछ भी नहीं
हँस सके ऐसी तो किस्मत नहीं
सिर्फ़ ढोहने के लिए जिये तो क्या
की मज़बूरियों का मंज़र हर पल यहा
गर बदलने है हालत तो ख़ुद बदलना होगा
गिर गए तो क्या उठ कर फिर चलना होगा
बदहाली एक दिन की नहीं भाई
सदियों बिगाड़ने में है लगाई
किसी पर दोष मड़के अब क्या होगा
प्रयासों का भी मूल्यांकन करना होगा
कभी तबीयत से पत्थर ना उछला होगा
खाक आसमा के सीने में सुराख होगा
दो और दो चार की तर्ज पर
तुम मिलो हम मिलें आगे बड़ कर
किया क्या हमने सही ग़लत
छोड़ कर अपने अहम् की लत
कल को सँवारने की कसम खाए
ताकि जिंदगी और ना ठोकर खाए
तभी इस अंतहीन दर्द का अंत होगा
जीने का सही मायने मुकम्मिल होगा
गर बदलने है हालत तो ख़ुद बदलना होगा
गिर गए तो क्या उठ कर फिर चलना होगा
अन्धे मोड़
- एक अन्धे मोड़ की तरह जिंदगी
पता नही टक्कर है की रस्ता साफ
चप्पलें घिस जाती है और पता नहीं
होगा भी की न होगा इंसाफ
ठन्डे बदन को शोले क्या दे तपन
हो चुके जो ख़ुद सपुर्दे खाख
...आँख खोलते ही भूख से सामना
जिंदगी को लगी मज़बूरियों की आग
जवान बेटी घर ब्याहने को है
दहेज ने मुश्किल खड़ी की लाख
किताबी ज्ञान दे बेटे को किया खड़ा
पर नौकरी हाथ कब आए बेबाक
पेंशन की लाइन में बूड़ा मरी
पर आई न कौड़ी भी हाथ
सपने अपना भी घर बनाने के
पर खुली आँखों से दिखे नाकामी साफ
सोचता हूँ कि यह वतन अपना ही है
कि भटक के आ गया दुश्मनो के पास
जिनके हाथों सौपी देश की तक़दीर
वही कर गये सपनो को खाख
गंध सियासत को मिटा दो यारों
वरना देश की तबीयत का होगा मजाक
सवाल
- कितने ही सवाल उठते है मन में
उथल पुथल करते इस जीवन में
सवाल का जबाब सवाल ही रह जाता
और मै नए जबाब में मशगूल हो जाता
हार कर भी जीतने की चाहत में
कभी तो मिलेंगे इस राहत में
...कब तलक मजबूरियाँ का रोना रोये
जो मिला उस खुशी को खोये
होती अगर दुनिया अपने बस में
तो जुझती न जिंदगी प्रश्नव्ह्यू में
और उठते न सवाल इस मन में
न करते उथल पुथल जनजीवन में
मात पिता में बसते प्राण
- किसे चाहिये पंखुड़ियाँ
इस दिल में बसा बागवान
किसे चाहिये मूर्तियां
इस दिल में बसा भगवान
किसे चाहिये दीपक की लौ
इस दिल में सूरज दिव्यमान
...चांदी की चमक अधूरी है
इस दिल में चंदा कांतिमान
ईश्वर की अनुकमा से
मात पिता में ही बसते प्राण
जो मिला उसी में सूख अपना
जीवन में संतोषी से कल्याण
वेदना कमियों कि तो बस
कर देती जीवन की शाम
और संतुष्टि विपदाओं में भी
देती विजय श्री का इनाम
इसलिये नहीं चाहिये पंखुड़ियाँ
मेरे दिल में बसा बागवान
ईश्वर की अनुकमा से
मात पिता में ही बसते प्राण
बिना कान इंसान
- अजी कौन कहता है
की दीवारों के कान होते है
यहा तो इंसान भी
बिना कान के होते है
किसी की कराहट न सुन सके
वह इनसान होते है
...मतलब परस्त दुनिया में
इंसान कम ज्यादा शैतान होते है
खुली आँखों से भी देख् कर
अंदेखा करना
मिसालें करी कायम
की पीठ में खंजर करना
बदल गये दस्तुर इस दुनिया के
हुए गरीब सब अपनी ही जुबा के
अब कौन किसके साथ चलता है
किसी की आहट पर भी मन खलता है
किस्से कहानी झूठ लगती है
की यह इंसानो की बस्ती है
यहा रहबसर सारे के सारे
इंसान होते है
भलमंसिययत के नेक इरादे
सब कदरदान होते है
पर्दाफाश हुआ इंसानियत का
इंसान कम ज्यादा शैतान होते है
अजी कौन कहता है
की दीवारों के कान होते है
यहा तो इंसान भी
बिना कान के होते है
आँखों को बहने दो
- क्यू लबो की हँसी कुछ और कहती है
तेरे ख्यालो में उदासी छुपी रहती है
इन्हे छुपाओ मत कुछ कहने दो
पीर पिघल जायेगी आँखों को बहने दो
तुम्हे क्या लगता तुम्हारा खयाल नहीं
तेरे गम से दिल में मलाल नहीं
...कभी तन्हाईयों में कभी रुसवाइयो मेंSee more
तुम्हे किया शामिल हर बारीकियों में
तुम ही बस हाले दिल समझ न सके
मेरी चाहतों के क़रीब पहुँच न सके
जिसे तू चाहे वह भी तहे दिल निभाये
तो मै खुश हूँ सनम की तू खुशी पाये
पर मेरे दिल को यह गवारा नहीं
तेरी मुहब्बत को किसी ने शीशे में उतारा नही
तू तड़पता रहा खुले जख्मों की तरह
तेरे दर्द से इस दिल में होती है सिरह
जज्बातो की चोट मुशकील से संभलती है
आ भी जा की मुहब्बत इंतज़ार करती है
क्यू लबो की हँसी कुछ और कहती है
तेरे ख्यालो में उदासी छुपी रहती है
अमर निशानी
- जिंदगी का भरोसा नहीं जब डूबती रोशनी आँखों की
हाथों की पकड़ बेकार है जब छूटती डोर सांसो की
दो पल की ज़िंदगानी है और फिर खत्म कहानी है
यादें ही रह जाती है बीते कल की अमर निशानी है
जिसने जैसा रंग रंगा उसकी वैसी ही तसवीर बनी
दिल से जो अपनायी द...ुनिया तो अच्छों में पहचान बनी
नफरत के बीज जो बोये तो हर दिल को तेरी याद भुलानी
करनी ही रह जाती है और रह जाती है मीठी वाणी
दो पल का मेहमान है बन्दे फिर काहे को अनुचित धधे
ऊँच नीच के फेर में फँस कर मार काट और झगड़ों के फंदे
अब नफरत की राह् बिसारो छोड़ो हर रंजिश पुरानी
इस जहां में ख़ुशियाँ ढेरो फिर क्यू खुराफात में ढेर जवानी
कोई तुझको भी याद करे करो कल्पना अतभुत यादों की
बाद तेरे कोई अमल करे तेरी कही अपनेपन की बातो की
क्योकी…………………….
जिंदगी का भरोसा नहीं जब डूबती रोशनी आँखों की
हाथों की पकड़ बेकार है जब छूटती डोर सांसो की
ग़ुलाम
- क्या पता क्या सैर सपाटा
उसने तो जबसे आँखें खोली
सुनी सदा एक कर्कश बोली
जीना है तो बस काम करो
अपने हर छड़ हराम करो
...कौड़ी के भाव बिका तभीSee more
जब जीवन का खिला अभि
पर दादे से होता आया
पीरी दर पीरी ग़ुलाम पाया
उसकी हर सुबह चुनौती है
सांसो पर दूजे की बपौती है
काहे की आजादी देश में
जब ख़ुद के लोग गोरों के भेष में
अब भी हुक्म चलाते है
अपने लोगो में यह बेबस रह जाते है
खुशियों का मुँह ना देखा
दुखों का जीवन में लेखा
पल भर का सकून करे किनारा
आज भी ऐसे लोग बेसहारा
उन्हें नहीं पता खुल कर हँसना
सदा गुजारिश हो जीवन फना
उनको बेमतलब यह पाँच सितारा
और बेमतलब हर सैर सपाटा
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