Wednesday, May 16, 2012

ऐ जिंदगी


ऐ जिंदगी मै जिंदगी तेरे नाम लिखना चाहता हूँ
तेरा ऐह्सास अपनी हर साँस में भरना चाहता हूँ
तुझमें रम के दो बदन एक जान होना चाहता हूँ
तेरे सदके ऐ हमदम तुझपे कुर्बान होना चाहता हूँ
मै तेरा साया मै सिर्फ़ तेरी पहचान होना चाहता हूँ
बसा ले दिल में मै जहाँ से अनजान होना चाहता हूँ
तू समा चांदनी मै गिरफ्त में चाँद रखना चाहता हूँ
मेरे महबुब मै मोहब्बत का इकरार करना चाहता हूँ
जमाने कि खुशी तुझसे तुझे बाहो में भरना चाहता हूँ
ऐ जिंदगी मै जिंदगी तेरे नाम लिखना चाहता हूँ

इंतजार


तेरी दिल में भी थी कशिश वरना प्यार नहीं होता
आँखों मे प्यार फिर लबो पर क्यू इकरार नहीं होता
चले आओ महबुब मेरे की अब इंतजार नहीं होता
जिंदगी का यह सफर अब अकेले मेरे यार नहीं होता
कयामत है हर घड़ी जब तलक तेरा दीदार नहीं होता
मै तेरा अब तुझपे मर मिटने पे दिल-ए इंकार नहीं होता
एक तू ही तमन्ना वरना जीने को दिल बेजार नहीं होता
दो दिल एक जान हम सनम क्यू तुझे ऐतबार नहीं होता
चले आओ महबुब मेरे की अब इंतजार नहीं होता
जिंदगी का यह सफर अब अकेले मेरे यार नहीं होता

रसुखदार


उसूलो को ताख रख।
रसुखदार बन बैठे।।
बैमानी कि चादर तान।
इमानदार बन बैठे।।
देश पर बपौती।
गजब दुकानदार बन बैठे।।
खादी में छिपे यह।
सियासतगार बन बैठे।।
इन्हे सत्ता सौप के हम।
गुनाह्गार बन बैठे।।
अजब तमाशा है की।
चोर ही तलबगार बन बैठे।।
मलाल क्या करे जब।
हम बेकार बन बैठे।।
कानुन से खेलते।
जुर्म के सैसवार बन बैठे।।
रोक नहीं इन पर।
हुक्मरान हरबार बन बैठे।।
उसूलो को ताख रख।
रसुखदार बन बैठे।।

इंसानियत भुला


जहां कल तक थी आबादी
वहा आज खाली मकान हो गए
क्योँकि इंसानियत भुलाके
तुम वहशी और हैवान हो गए
पसंद आग और बारूद तुम्हे
तुम तो मौत की दुकान हो गए
तुम्हे क्या पता बेखबर
तुम खुदी से अनजान हो गए
जो तेरी मौत का सबब बने
तुम उसी बारूद पर जवान हो गए
कभी अपनो के दिलो में देखो
तेरी करतूत पर शर्मशार हो गए
जो कल तक थे साथ तेरे
आज तुझसे ही परेशान हो गए
शरीअत का ना कर बदनाम
तुम खुद मौत की दुकान हो गए
कोई मजहब आतंक नही सिखाता
तुम ही इनसान से शैतान हो गए
फिरकापरस्तीयों के जाल में फँस
तुम आतंक की पहचान हो गए
अपने ज़मीर कि कभी सुनो
पूछेगा क्यू दरिंदगी की खान हो गए
पूछेगा तुमसे की इंसानियत भुलाके
क्यू तुम वहशी और हैवान हो गए

बत्तीस रूपए


"साले बत्तीस रूपए तो कमा ही लेते और फिर भी सरकार से उम्मीद करते है की उनके लिए सरकार कुछ करे अरे भाइ देश के प्रधानमंत्री ने बत्तीस रूपए तक कमाने वाले गरीबी रेखा से ऊपर रखा है फिर सरकार के सिर पर क्यू धान बोने में लगे हो, यह तो पहले सोचना चाहिये था जब काँग्रेस को सत्ता पर काबिज किया था अब मरो या जियो सालों तुम सब गरीबी रेखा से ऊपर हो, भइया जैसा बीज बोयेगा वैसा फल होयेगा अब देखो उत्तर प्रदेश में सपा को जिताया तो चोरी चकारी, गुंडागर्दी, अपहरण, चैन स्नैचिंग, बलात्कार, हत्या इत्यादि तो होंगे ही क्योँकि भाइ यह उनकी पहचान है भाइ बात से बात निकाल आई तो दो चार बात हमने कह दी वरना हम्हे तो बोलने की आदत ही नहीं है...........
"

आज कोई बात मत कहो


आज कोई बात मत कहो
बस मेरे संग साथ रहो
मन के गुबार निकल जाते है
जब हम तुम मिल जाते है
दर्द था पर अब नही
तुम तुम हो सब नही
तुमसे ही है प्रितम ऐह्सास
हर खुशी प्रिय तुम्हारे साथ
तुम मानोभाव का संगम
तुमसे ही सुखद समागम
तुम बिन अधुरे मेरे दिन रात
तुमसे सम्पुर्ण मेरी हर बात
कोई पल न जब तेरी याद न हो
मेरे पागल मन तेरा उन्माद न हो
वह पल न हो जब तेरा साथ न हो
विचार क्या जिसमे तेरी बात न हो
तुम दिल की आँखों से कहो
मै सुनू और तुम सुनाती रहो
आज कोई बात मत कहो
बस मेरे संग साथ रहो

परम्परा

अन्याय परम्परा इनकी, अम्बेदकर लिखा कानुन कब कोई सरकार पड़ती है
शर्म और हया बेच कर जो किताब लाये उसके हर पन्ने में बेशर्मी बरपती है!
लाज सरे चौराहे निलाम हुई और जिंन्दगी हर मोड़ बेपनाह तड़पती है!
इन्होंने इस कदर किया जीना हराम की लड़ाइ खुदबाखुद हमसे लड़ती है!
वह चैन से बैठे महलो में और अपनी जिंदगी किसी कोने में सड़ती है!
जनता जनार्दन तो एक गाली इसके ओर छोर तो रुसवाई पसरती है!
नाकामिया तकदीर बन गयी कम्बख्त सियासत ऐसी चाल चलती है!
सत्ता नाम तानाशाही का भला कब किसी की इनके आगे चलती है!
आवाज दब गयी हर इंसान की आज तो बदनाम हुकुमत कि सरपरस्ती है!
समय की माँग है लरो या मरो वरना ख़ुद सोइ तकदीर कब जगती है!

गुमनामियो में खॊया


गुमनामियो में खॊया मै।
अपनी पहचान को तरसता हूँ।।
आँसुओं का सैलाब लिए।
गम-ए मंज़र सा बरसता हूँ।।
बेवजूद जिंदगी है मेरी।
जीते जी बे-मौत मरता हूँ।।
खुशियों कि सरहदें नामुमकिन।
हाल-ए दिल तड़पता हूँ।।
लाश सी ठंडक लिए।
चिताओ सा दहकता हूँ ।।
आम आदमी है एक गाली।
एक ढुंढो तो हजार मिलता हूँ।।
जरूरतें रोज रुलाती है।
झूठे मौखटे पर हँसता हूँ।।
दिलासा कल सवरने का।
बेसब्र मायुसी से लड़ता हूँ।।
खुदा अब रहम भी कर दो।
जिंदगी के हर पल से डरता हूँ।।
तूने किस्मत में लिखे दर्द।
फिर भी एतबार करता हूँ।।
स्याह रात से रहा वास्ता।
रौशन सुबह का इंतजार करता हूँ।।
तुम्हे जो पसंद करो ए खुदा।
मुझे जो पसंद वह् आप करता हूँ।।
मै हूँ एक आम आदमी।
देश की नसों में लहू बन कर बहता हूँ।।
हमारी मेहनत से सजे आशियाने।
और ख़ुद सड़कों पे रहता हूँ।।
गुमनामियो में खॊया मै।
अपनी पहचान को तरसता हूँ।।

मेरी धड़कन


कितना भी दूरी कर लो प्रिय
तुम दिल के इतने पास हो
मेरी धड़कन मेरी सांसो में
तुम मेरा सुखद एहसास हो
सोते जगते खयाल तुम्हारा
प्रिय तुम सलोना ख्वाब हो
फूलो भरे गुलदस्ता बेरंग
तुम मन उपवन का गुलाब हो
मेरी चाहत का आगाज तुम्ही
हा तुम आफरीन आफताब हो
प्यार के लव्जो से सजी हुई
एक दीवानी सी किताब हो
तुम्हे तहे दिल चाहेंगे सराहेंगे
तुम मेरी राहत का जबाब हो
तुमको मानो या मानो प्रिय
मेरे जीवन में तुम ख़ास हो
मेरे मन में रंग भरने वाली
दीवानी मतवाली साँस हो
कितना भी दूरी कर लो प्रिय
तुम दिल के इतने पास हो
मेरी धड़कन मेरी सांसो में
तुम मेरा सुखद एहसास हो

दिल पर वार


तुम्हे तो दिल पर वार करनें की आदत हो गयी
बिखर जाए काँच से दिल तो कहा शहादत हो गयी
तुम हसीनो को तो हर जुल्म ढाना लाजिम है
किया प्यार तो दीवानो को तड़पना भी वाजिब है
यह खयाल अब दर्दे दिल की इबादत हो गयी
हूँ मजबूर सनम क्या करूँ जो मोहब्बत हो गयी
परवाने को शमा से जलने की हसरत हो गयीं
तुम बिन जिंदगी मौत की जिल्लत हो गयी
नशा शराब का होता तो उतर भी जाता सनम
तेरी नजरो से जो पी शराब तो मंजूर हर सितम
है यक़ीं कभी तो तुझमें प्यार भरे जज़्बात होंगे
आज तन्हा ही सही पर कल हम संगसाथ होंगे
तब कुछ मत कहना हम नजरो को पढ़ा करते है
तेरे आशिक है सनम बस तेरी परवाह करते है
तू मिलीं न सही पर अजब तेरी चाहत हो गयी है
तुमसे प्यार है सोचके ही जिंदगी खूबसूरत हो गयी है
मेरे अहले दिल पर तेरी ही हुकूमत हो गयी है
तुझे भी पता पर न मानने की फितरत हो गयी है
क्युकी तुम्हे दिल पे वार करनें की आदत हो गयी
हूँ मजबूर सनम क्या करूँ जो मोहब्बत हो गयी

प्रिय मै मनमुग्ध मोहित


प्रिय मै मनमुग्ध मोहित,
तुम ही बसती हो मेरे अंतःकरण में।।
मन व्याकुल करूँ प्रतिक्षा,
पुष्प गुथु मै तेरे सुरमई कुंतल में।।
दहनशील प्रतिछा की घड़िया,
नित विभावरी तेरी राह् निहारु।।
हो मिलन प्रिय तो अशक्तं हृदय से,
विकट वेदना भार उतारू।।
मन उत्सोक देख प्रिय तेरे,
चंचल चपल मन भावन से नैना।।
सजल नेत्र से मद्धयम शोभित,
पूनम कि नवल चांदनी रैना।।
तुमसे जीवन का स्वार्गिक आनंद,
स्विकार करो प्रिय प्रेमनिमंत्रण।।
तुम संग होगा मिलन सोच रोमांचित,
वो प्रेम प्रीति,अनुरक्ति छ्ण।।
तुम जीवन की अलभ्यि कोष,
बसों जीवन के समस्त चरण में।।
मेरा मन मस्तिष्क अनुचर प्रिय तेरा,
नही रहा अब स्वःनियंत्रण में।।
प्रिय मै मनमुग्ध मोहित,
तुम ही बसती हो मेरे अंतःकरण में।।
मन व्याकुल करूँ प्रतिक्षा,
पुष्प गुथु मै तेरे सुरमई कुंतल में।।

ओह प्रकृति के रचनाकार


पूछता हूँ आज तुझसे, ओह प्रकृति के रचनाकार
आख़िर कर क्यू रचा तूने, यह अलख संसार
क्यू मानस के जीवन में, दिए दुख भरे प्रहार
दीं कहीं किसकती साँसें, कहीं दीं खुशिया अपार
अभिलाषाओं का अंत नही प्रभु ये मुझे स्वीकार
और हर आशा की आस् लगाना भी माना बेकार
पर अनगिनत जो भोगे जीवन में मात्र निराशा के खार
और शासक वह जिनके कृत पे सतयुग में तूने किया संघार
क्यू बदली कलयुग की नीति, कैसे सहूँ प्रकृति विकार
प्रभु कुंठित मन मेरा कैसे करूँ यह पीर स्विकार
मन विस्मित करूँ तुमसे हठ या प्रकट करूँ आभार
कब कैसे मिट सकेंगी जीवन में दुखों की विकट कतार
पूछता हूँ आज तुझसे, ओह प्रकृति के रचनाकार
आख़िर कर क्यू रचा तूने, यह अलख संसार

शिकस्त


हर भरोसे को शिकस्त दर शिकस्त मिलती रही
समय का तकाजा उलझी जिंदगी और उलझती रही
बेसुद हालत-ए गम के बाद हम क्या बहाये आँसू
बेकदर थक चुकी है आँखें जो सदियों से बहती रही
अफसोस नहीं के अब जालिम ख़ुशियाँ मिलती नहीं
क्यूँकि बेवजह माथे की शिकन किस्मत बदलती नहीं
नसीब दर्द-ए दास्ताँ और राहतों कि किल्लत हो गयी
वक्त की दहलीज़ पर क्या करूँ चाहतों की चलती नही
बदकिस्मती हमराह हुई अनहोनिया अब टलती नही
दर्द के हर पायेदान पर तन्हा जिंदगी बिलखती रही
हुई उम्मीद दफन और नफरत की आंधिया चलती रही
और अपने हर भरोसे को शिकस्त ही मिलती रही
समय का तकाजा उलझी जिंदगी और उलझती रही

जिंदगी से रुख़सत


हो गया जिंदगी से रुख़सत पर किसी को पता न चला
था बड़ा अभागा जो की किसी को मेरा जाना भी न खला
जिंदगी तो रास न आई इसलिये गले मौत ही लगा ली
जिस जमीन जन्मा उस ज़मीं से पहचान ही मिटा ली
है अफसोस कि इस खुदा ने क्यू बक्शी हैसियत-ए गरीब
के बाद मौत के भी न हो सके हम्हे चार कांधे भी नसीब
अपनो कि दरखास्त क्या करूँ मुझे तो गैर भी ना मिला
जाते जाते ऐह्सान ए जिंदगी माफ कर देना गर हो कोई गिला
हो गया जिंदगी से रुख़सत पर किसी को पता न चला
था बड़ा अभागा जो की किसी को मेरा जाना भी न खला

ठिठोली


बहुत हो गया, चलो अब ठिठोली करें
कुछ मस्ती भारी बातों से झोली भरे
आख़िर कब इस हालत का रोना रोये
छोड़ भी दे भला क्यू अच्छे पल खोये
बहुत हो गया, चलो अब ठिठोली करें

सुबह हो गयी


उठो उठो, सुबह हो गयी मामू
अब आलस पर कर लो काबू
मेज सजी पकवानों से
अब जागो निकलो ख्वाबों से
करो जल्दी पल्दी पेट पूजा
वरना चट कर जायेगा कोई दूजा
जग कर करने ढेरो काम
नींद खुमारी को अब दो विराम
चलो दिन करो बिंदास शुरू
उससे पहले जपो नाम प्रभु
उठो उठो, सुबह हो गयी मामू
अब आलस पर कर लो काबू
 

व्यथा कहूँ या प्रथा


इसे व्यथा कहूँ या प्रथा कहूँ
बीतती या अपनायी सदा कहूँ
मार्तत्व या स्त्रित्व धर्मव्रता कहूँ
या मात्र माँ की ममता कहूँ
हर असहनीय दर्द को
पी जाने वाली ममता कहूँ
मजबूरी या असीम क्षमता कहूँ
विस्मित मन मेरा
नहीं पता हां नहीं पता कहूँ
इसे व्यथा कहूँ या प्रथा कहूँ

दरारें


दीवारों से झाकती दरारें
इतनी महीन जो दिखाई भी न दे !
पर दरारें कमजोर करती है !
आत्मा झिकझोर देती है !
क्योँकि गौर से देखो
या ना देखो
दरारें अपनी जगह नहीं बदलतीं नहीं !
जहां है वहा भी रहती
समय के साथ
जहां नहीं थी
वहा भी अपना निशान छोड़ जाती है !
जब समय था तब भरी नहीं
शुरुवात में था संभव
जो आज हुआ असंभव!
कौन करे पहल
और वजह को तलासती
हमारी सोच दरारों को
विस्तार देती है !
जो दिखती तो महीन थी
पर समय के साथ
दीवार ही फाड़ देती है !
फिर भी इनसान
बेफिक्र दरार को करता नजरअंदाज है !
देश बँटा, प्रदेश बँटा,
घर और खानदान बँटा
महज दरारों कि अनदेखी से !
क्योकि दीवारों से झाकती दरारें
इतनी महीन जो दिखाई न दीं !
पर हश्र पर गयी नजर
तो सिर्फ़ और सिर्फ़
दरारो ने तबाही दी !

दीवारों के भी कान


श. श..श...श........धीरे बोलो दीवारों के भी कान होते है!
ताक झाक हर तरफ़, हर समय फिर क्यू आप हैरान होते है
कर गुजरे बिना सोचे अब नाहक ही परेशान होते है
भूल थी आपकी जो सोचते थे की खबरी नादान होते है
वह् तो काबिल थे आप ही काबलियत से अनजान होते है
तभी किया कांड बंद कमरे में पर कारनामे सरेआम होते है
कल तक झुठ्ठे कमाया नाम और आज बदनाम होते है
सफेद पोश दिखते पर पता जब तुमारे काले काम होते है
तो सुधारों खुद को और................
श. श..श...श........धीरे बोलो दीवारों के भी कान होते है!

गुमसुम दुबका नन्हा सा एक बच्चा


मै तो गुमसुम दुबका नन्हा सा एक बच्चा था
जब पहले पहल आँख खुली तब अंनभिग्य था
अफरा तफरी और इस दुनिया की बैचैनी
करनी होंगी मुझको भी नजरे अपनी पैनी
न पता था दुश्वारियो से हर मोड़ होगी मुलाकात
तड़पते दिल को जाने सहने होंगे कितने आघात
दुविधाओ से भरा हुआ जीवन का हरेक पहर
ख़ौफजदा जिंदगी और मौत बाँटता हुआ शहर
दिन की दौड़ धूप बेमतलब हाथ हार के मंज़र
बनाके अनचाही रंजिशो का हिस्सा सोप दिए खंजर
एक दूजे को खत्म करो भूख हुई हाबी मन पर
कौन सच्चा कौन झूठा क्या गुनाह किसके सर पर
कभी साजिसो के शिकार कभी ख़ुद शिकारी बन गया
जन्मा था इनसान बन कर क्यू हैवान बन गया
जन्म लिया जब हमने तब कब ऐसा सोचा था
समझा था जिसे जिंदगी वह वाकई यह धोखा था
जब पहले पहल आँख खुली तब अंनभिग्य था
मै तो गुमसुम दुबका नन्हा सा एक बच्चा था

मेरे महबूब


मेरे महबूब जब तुझे भुला ही नहीं तो क्या याद करूँ
ख़ुद गिरफ्त में दिल दिया तो सनम क्या आज़ाद करूँ
तेरी रुसवाइयों पे कुर्बां दिल कहे न कोई फरियाद करूँ
सोचता हूँ दर्दे दिल कि दवा दर्द से ही इजाद करूँ
ख़ुद के जख्मों पर नज्म लिखूँ ख़ुद ही इरशाद करूँ
नाकाम सही पर मुहब्बत तुमसे और क्या मुराद करूँ
हर खुशी हो मुकम्मल तेरी खुदा से यही फरियाद करूँ
मेरे महबूब जब तुझे भुला ही नहीं तो क्या याद करूँ

उजाले की खोज


मै उजाले की खोज में जाने कितनी दूर निकल आया
अन्धेरा था आंखो का हमनशि और वक्त किया जाया
सुना अनसुना कर दिया जब किसी ने सच था बताया
सच के आइने से हुआ रुबरु अब एक ऐसा वक्त आया
ना मैंने ही किसी से पुछा और न किसी ने ही बताया
और हुई बहुत देर जब मुझे असल मंज़र समझ आया
कि उजाले की खोज में मै कितनी दूर निकल आया
यकीन न करना फितरत में शामिल तो हश्र ने रुलाया
मिला इशारा अपनो का जिसे ज़हन ने गैर था बताया
गैरियत के बावस्ता किसी को अपना न समझ पाया
काश इस जमाने से कछ हमदर्द हमने भी चुने होते
बाँट कर गम और खुशी दिल से दिल के तार बुने होते
हाथ जो लौटे नाकाम होकर वे सफर में ख़ास बने होते
बजाय मुफ्फलसी दोस्तों की फेहरित में कुछ जने होते
आज नाकामियों के बाद मुड़ के देखा तो नदारत साया
मै उजाले की खोज में जाने कितनी दूर निकल आया
अन्धेरा था आंखो का हमनशि और वक्त किया जाया

यत्न प्रयत्न का अंत न हो


यत्न प्रयत्न का अंत न हो
जबतक विजय जीवंत न हो
तुम लगे रहो तुम डटे रहो
पुरूषार्थ मार्ग पर बने रहो
जीवन तो है कठोर तपस्या
अशक्त न हो देख् समस्या
बिना कर्म के प्रभुत्व कहा
दुर्बल निर्बल का महत्व कहा
कर्मठ मानुस तो हार नही
साहस बिन जीवन पार नहीं
इच्छित लक्ष्य से साक्षात्कार नहीं
विकट विपदाओं का निस्तार नहीं
हो मात्र आस् परंतु प्रयत्न न हो
स्व:इच्छाओं का किंचित तत्व न हो
आत्म शक्ति पर अधिपत्य न हो
निरी योजना पर योग्य क्रत्य न हो
तो संघर्षों भरा जीवन पार नहीं होता
दाँव पैच से जीवन में श्रंगार नहीं होता
कटुसत्य अनुकम्पा से जीवन पार नहीं
बिन कर्म किए अचल अचर उद्धार नही
निकम्म को अकर्म का पुरुस्कार नहीं
परंतु यदि हो तेजस्वी तो तिरस्कार नही
सघन विवश्ता से किले विध्वंश न हो
जब तक धनुधर के अंकित अंश न हो
तो हे मानुस लगे रहो तुम डटे रहो
है जटिल घड़ी वज्र समान तने रहो
यत्न प्रयत्न का अंत न हो
जबतक विजय जीवंत न हो

मै दिलजला दिल जलाना चाहता हूँ


जिंदगी तेरे नाम से शुरू तेरे नाम पर खत्म
इतनी नादां न बन तुझे हर हाल का है इल्म
है सीने में दफन बस तेरी ही याद के ज़ख्म
हँस के न टाल ऐ सनम उल्फत के सितम
तुझे हो मंजूर के न मंजूर मै वह तराना चाहता हूँ
तेरी चाहतों में डूब कर नज़्मे मोहब्बत गाना चहता हूँ
तुम दिल में महफुज कर यादों में सदा बसाना चाहता हूँ
सच हो कि न हो पर तेरा ही ख्वाब सजाना चाहता हूँ
गम बेबफाई का सही मै दिलजला दिल जलाना चाहता हूँ
तुम्हारे दिल को मजबूर कर तुझीको याद आना चाहता हूँ
मेरी बेबसी पर आज मुसकरा ले पर ऐ सनम
कभी उफ्फ न करेंगे हमने भी ली है कसम
जिंदगी तेरे नाम से शुरू तेरे नाम पर खत्म
इतनी नादां न बन तुझे हर हाल का है इल्म

कंबख्त दूरियां


अजी कौन कहता है की कंबख्त दूरियां है
ख़ुद से कहीँ ज्यादा तुझसे नजदीकिया है
वह अलग बात की तू कभी मिला ही नहीं
पर मेरी यादों से तू कभी बिछड़ा ही नहीं
तेरी बेबफाइ के सिवा कोई ज़ख्म ही नहीं
पर टूट जाऊँगा दिल में यह भ्रम ही नहीं
हर करम मंजूर तेरा तुझसे कोई गिला नही
बदल दे मुझे किसी दर्द में वह हौसला नहीं
दिले मजबूर चाहतों का दौर टूटता ही नहीं
रंग मौहब्बत का मेरे दिल से छुटता ही नहीं
बेखबर तेरे बिन बहारो का सिलसिला ही नहीं
तेरे बाद जहाँ में कोई तुझसा मिला ही नहीं
तू मिलेगी एकदिन दिल कि उम्मीदिया है
मेरे चाहतों ने तुझे पाने का ऐलान किया है
वक्त रहते हम मिलंगे क्या मजाल दूरियां है
क्यूँकि ख़ुद से कहीँ ज्यादा तुझसे नजदीकिया है

बुलंद मशाल


अन्धेरे ग़र मिटाने है तो बुलंद मशाल जरूरी है
आतायी घुमते खुलकर उनका इंतकाल जरूरी है
गरजते बादलो बरसो कि अब बरसात जरूरी है
है मसले कई अनसुलझे अब हर बात जरूरी है
पड़े दिन के उजाले कम अब हर रात जरूरी है
कौमी कमजोरियों तोड़े आज हर जात जरूरी है
वक्त यूँही न गुजर जाए जंग का आगाज जरूरी है
दफन शोले हर दिल में दिखे वो आग जरूरी है
जला दे जुल्म की आँधी आज वह् अंगार जरूरी है
जुनुन ठंडा न पड़ जाए जंग-ऐ ऐलान जरूरी है
अकेले सदियां है बीती अब हर मुलाकात जरूरी है
कदम मिलाने ही होंगे की अब हर हाथ जरूरी है
कब तक तन्हा रहेंगे हम सबका साथ जरूरी है
अर्जी ताख पर रखकर अब घूस और लात जरूरी है
किसने अमन चैन छीना उनकी शिनाख्त जरूरी है
फर्ज़ माटी का ऐ दोस्तों अब तो इंसाफ जरूरी है
जला दे जुल्म की आँधी आज वह् अंगार जरूरी है
अन्धेरे ग़र मिटाने है तो बुलंद मशाल जरूरी है
आतायी घुमते खुलकर उनका इंतकाल जरूरी है

सोचना मुश्किल


है जब सोचना मुश्किल, फिर भला कैसे भुला दोगे
बड़ा आसान लगता था की, हमको यूँही भुला दोगे
अपनी गर्म सांसो से जरा पूछो
दिल के ऐहसासो से जरा पूछो
लिखा तो नाम तुम्हीने था फिर ऐसे कैसे मिटा दोगे
जो नजरे ढूँढती मुझको, वह् निगाहे कबतक चुरा लोगे
प्यार भरे जज्बात से पूछो
बेचैन दिन और रात से पूछो
बंद होठों की चुप्पी से, क्या दिल कि पुकार दबा लोगे
दिल के राज बया हमसे, सनम कब तक छुपा लोगे
क्या है सही अंदाज़ तुम पूछो
ख़ुद दिल के हर राज से पूछो
सनम यह दिल की मर्जी है फिर तुम कैसे भुला दोगे
है जब सोचना मुश्किल, फिर भला कैसे भुला दोगे

मेरी उदासिसिया


रात चाँदनी से नहाई
बेला बिखेरती खुश्बू
इस खुशनुमा माहौल में
मेरी उदासिसिया पसरती है
हर तरफ़ चहल पहल
टिमटिमाते सितारों की कतार
धरती पर रौनक चार चांद
पर मन में आह सी उठती है
धरती गगन का संगम
दूर झरनों कि कलकल
मधुर साज़ कि पहल
पर मनमधुर ध्वनि खलती है
तुम साथ नहीं मेरे
तो क्या अन्धेरे क्या उजेरे
किसी से मिलने कि आस् नहीं
मुझे तो आज तन्हाई ही जचती है
हर्ष का अर्थ तुमसे
तुमसे जीवन आकार प्रिय
यदि यह स्वप्न नहीं साकार
तो मुझे हर खुशी झुठी लगती है

चाहत


चाहत है मोहब्बत की छा नही
ढूँढता रहा पर चाँद कहीं दिखा नही
महसूस क्या करूँ जब तू यहा नही
दिल में तेरे सिवा कुछ रहा नही
प्यास है समुंदर है पर चाह नहीं
कदम है फ़ासले है पर राह् नहीं
ज़ख्म है पर लबो पर आह नही
मौके हजार जीने की थाह नहीं
बेरंग लगे दुनिया तू जहा नहीं
क्योकी……………
चाहत है मोहब्बत की छा नही
दिल में तेरे सिवा कुछ रहा नही

कौन है


यह कौन है जो छेड़ता है मेरे दिल के तार
जो सोचने पर मजबूर करता है बार बार
मेरे ख्यालो के आँगन में बसा के संसार
कौन है जो जगा गया बस प्यार ही प्यार
जाने किसकी चाहत में दिल हुआ बेताब
पूछता फिर रहा दिल से दिल का जबाब
यह ढूँढती निगाहे और बैचैनिया बेहिसाब
जाने कब कैसे सजे आँखों में उसके ख्वाब
इश्क़ में हुआ निकम्मा मार मिटने को तैयार
क्योँकि दिल में उसके दम से आयी फिर बहार
लगे आज पूरा हुआ सदियों का बेबस इंतज़ार
फिर भी पता नहीं वह् कौन है वह् दिले यार
वह कौन है जो छेड़ता है मेरे दिल के तार

प्रेम अगन


झरोखों से आती मंद पवन
कभी तो समझ मेरा मन
घिरी घटाओ समझो प्रेम अगन
अब तो बरसो आयो सावन
घने बादलो में छिपे रस्ते खोये
पिया आगमन को नयन टटोहे
अखियाँ पिया के स्वप्न सजोये
यह विरह की घड़िया खटके मोहे
लागी मोहे प्रिय की ऐसी लगन
हो मिलन करो कुछ ऐसा जतन
निरी प्रतिछा में न टूटे यह तन
अब हवाओं आओ पीह के संग
घटाओ बनो तुम आज दर्पण
जिसमे दिखे बस मेरे सजन
झरोखों से आती ऐ मंद पवन
अब तो समझो तुम मेरा मन

ऊँचाइयाँ


अभी बहुत दूर है ऊँचाइयाँ
मै आज मुठ्ठी में आसमान चाहती हूँ
देख् ली बादलो की परछाईयाँ
इन्हे अपनी आँखों में बसाना चाहती हूँ
यह श्रंखला लगे छोटी मुझे
मै पूर्ण हिमालय गोद भरना चाहती हूँ
विस्मित जो कल्पना करे मुझे
उसी को आज साकार बनाना चाहती हूँ
माना है प्रथम चरण ही सही
पर पवन संग गीत गुनगुनाना चाहती हूँ
मै प्रकृति की हरियाली से ही
आज अपने मनोरम वस्त्र सजाना चाहती हूँ
मेरी खुली बाहों का है यही संकेत
परिंदो की तरह गगन में उड़ जाना चाहती हूँ
अभी बहुत दूर है ऊँचाइयाँ
मै आज मुठ्ठी में आसमान चाहती हूँ

सिद्धांत


सभी पार्टियों में आज सिद्धांत, नैतिकता एवम् जिताऊ कैन्डीडेट की इतनी कमी है कि भ्रष्ट, शातिर अपराधीयों ( हत्या जैसे जघन्य अपराध में शामिल) व्यक्तियों को ही टिकट थमा कर अपनी पार्टियों को मज़बूत करने का घिनौना रास्ता अख्तियार करती है और जब कोई टीका टिप्पणी उनके कु-चरित्र पर करता है तो उसे संसद का अपमान करार देते है, आज यदि किसी भी पार्टी पर नजर डाले तो आपराधिक ग्राफ का स्तर चिंता का विषय नजर आयेगा,...
हमारे कर्णधार देश के सांसदों का कहना है की हम माननीय सांसद है और हम क्या करते थे या क्या करते है इसका वास्ता भला आम जनता से क्यो भाइ जीत कर आए है हा यह बात और है की हमारे ऊपर कोर्ट में चल रहे कुछ आपराधिक मुकदमें है तो भाइ वह तो हम सांसद की वरीयता है वरना कौन सा दल हम्हे पूछता, साली सालों साल कमाई इज़्ज़त का फालुदा करने वालों तुम मेरा नहीं संसद का अपमान करते हो, और कुछ कहना भी है तो कमस-कम भाषा शैली तो सुधारों, साला यु ही चोर जाहिल, गुंडा, मवाली कैसे कह दोगे, बोलना ही है तो नेता जी बोलो
!पन्दर्वी लोकसभा में लगभग १६० सांसदों पर अपराधिक मुक़दमे दर्ज है जिसमे अधिकास पर गंभीर मामले है::ज़रा नज़र डालिए अपने रहनुमाओं पर की आप की सोच को लेकर वो क्या सोच रहे हैं . अँधेरे चारों तरफ़ सायं-सायं करने लगे चिराग़ हाथ उठाकर दुआएँ करने लगे तरक़्क़ी कर गए बीमारियों के सौदागर ये सब मरीज़ हैं जो अब दवाएँ करने लगे लहूलोहान पड़ा था ज़मीं पे इक सूरज परिन्दे अपने परों से हवाएँ करने लगे ज़मीं पे आ गए आँखों से टूट कर आँसू बुरी ख़बर है फ़रिश्ते ख़ताएँ करने लगे झुलस रहे हैं यहाँ

धधे


if we were the only normal person near him,our first option would be to save hislife.........but all those media people were once such a normal person who would help others and their life with cameras changed everything,now whenever they see a unusual or defferent scene their first option would be shoot it in their camera rather than doing any other action,share and like to spread this...................
शर्मनाक क्रत्य की जितनी भी निन्दा की जाए कम है इन मीडिया के लोगो ने इंसानियत को परे रख कोरी धन्धा व्यवस्था को अपना लिया है जैसे वैश्या को धन्धे में सिर्फ़ पैसा दिखता है वैसे इन्हे धधे में सिर्फ़ कवरेज, चाहे फिर वह् किसी की मौत का तमाशा ही क्यो ना हो...........