Monday, February 6, 2012

शिक्षा का व्यवसायीकरण

कभी 55 प्रतिशत से पास अपने बच्चे को कलेजे से लगा कर बाप फूला नहीं समाता था पुरे मोहल्ले


में लड्डू बाटता और कहता मेरा लल्ला गुड़ सैकेंड क्लास पास हो गया पर आज 90 प्रतिशत से पास


बच्चे के पसीना छूट जाता है की अगले दर्जे में प्रवेश कैसे होगा, पहले स्नातक के बाद घर बैठे नौकरी


का बुलावा आ जाता था आज के हालत ऐसे बदले की चप्पले घिस जाती है पर नौकरी नहीं मिलती


उस पर निकम्मी सरकार शिक्षा का व्यवसायीकरण करने में लगी है दिखावे के लिए निजी 


विधयालयो में मासिक शुल्क पर अंकुश तो लगाती है परंतु उन्हें खुली छूट होती है की बिल्डिंग 


वेलफेयर, कम्पियुटर क्लासेस, एक्स्ट्रा एक्टीविटी, और भी तमाम दवंद फंद से लोगो की जेबों पर 


डाका डाल सके! एक ओर वह कानून बनाकर शिक्षा को निःशुल्क और अनिवार्य बताती है, वहीं 


दूसरी ओर पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत शिक्षा को क्रय-विक्रय की वस्तु बनाना चाहती है।


पढ़ाई पूरी करके जब एक युवा जीवन के प्रथम अध्याय यानी रोजगार के लिए निकलता है तो भी


सरकारी उदासीनता का शिकार होना पड़ता है क्योकी सरकार के पास पर्याप्त रोजगार ही नहीं है 


एव्म जो है वहा भी रिश्वत खोरी है यानि लल्ला पास होकर भी फेल ही हो जाता है यह दुर्भाग्य 


आज कि नईपीणी को विरासत में मिला है!

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