कभी प्यासे को पानी पिलाया नहीं, बाद अमृत पिलाने से क्या फायदा?
"विश्व समुदाय की दैयनिय विसंगति का सूचक अमीरी गरीबी जिसके फलस्वरूप जहा एक ओर अमीरों के
पास असीम धन के भंडार है जिसका उपयोग कितना भी करे वह अंश मात्र है जबकि इसके विपरीत निर्धन
भुखमरी के शिकार है और उस पर सरकार द्वारा आम जनता का मौलिक अधिकार हनन शर्मनाक है इसका
सबसे बाड़ा उदाहरण की जब आम नागरिक अपने अधिकारों के लिए अपनी अभिव्यक्ति भी रखता है तो उसे
विद्रोह का नाम दे कर कुचल दिया जाता है! यह हम्हारे देश की परम्परा ही थी कि एक प्यासे की प्यास बुझाना
धर्म का कार्य माना जाता था परन्तु बदलते परिवेश में लोगों को स्वच्छ जल सुलभ कराने में सरकार नाकाम
हो चुकी है जिसके परिणामस्वरुप जल ही जीवन म्रत्यु का अभिप्राये बन चुका है और लोग अस्वच्छ जल के
चलते कुपोषण के शिकार हो रहे है! यह देश के लिए चिंता का विषय है कि जीवन का सत्य आज व्यवसाय
का माध्यम बन चुका है जगह जगह पियाउ, चापाकल, और पानी की टोटी की जगह आज महँगी मिनरल
वाटर ने ले ली है, अब आप ही सोचिये जहा एक गरीब दो जून की रोटी भी नहीं कमा सकता वह इस
जलाधिकार से भी वंचित कर दिया जाए तो उसके साथ यह सरकार तंत्र का अन्याय नहीं तो क्या है, साफ़
और सीधे शब्दों में कहूँ तो हवा पानी प्राकृतिक सम्पदा है और इसे मानवाधिकार के दायेरे से भला कोई कैसे
अलग कर सकता है अतः राष्ट्रीय रणनीतियों में एक महत्वपूर्ण बदलाव की जरूरत है! "
1 comment:
aap ne sahi kaha hai...
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