चुल्हा जले ना चक्की चले!
निर्धन तो बस भूखों मरे!
यह इकिस्वी सदी का भारत है
बेबस लाशों पर खड़ी इमरात है!
महंगाई मुँह बाये खड़ी है!
ना बीते वह मुश्किल घड़ी है!
यह देश वही जहा कांड हवाला!
टुजी थ्रीजी अनगिनत घोटाला!
दुजी ओर स्वप्न निवाला!
पर नहीं कोई है सुनने वाला!
होती यहा कागजी कार्यवाही!
तारीख तले दबती सुनवाई!
क्यूकि दबंग सियासत बुलंद किले!
और निर्धन को बेबसी मिलें!
यह भारत की स्तरविहीन सियासत है!
यहा निर्धन केवल आफत ही आफत है!
जिनके पल्ले दुखों की झड़ी है!!
मरे जिये फिक्र किसे पड़ी है!!
राजतंत्र के सब कोरे वादे!
अपनी ही जेबों के मशगूल इरादे!
जिसमें निर्धन का घरबार जले!
रोना भी मुहाल हुआ!
राजतंत्र को विलाप खले!
चुल्हा जले ना चक्की चले!
निर्धन तो बस भूखों मरे!
निर्धन तो बस भूखों मरे!
यह इकिस्वी सदी का भारत है
बेबस लाशों पर खड़ी इमरात है!
महंगाई मुँह बाये खड़ी है!
ना बीते वह मुश्किल घड़ी है!
यह देश वही जहा कांड हवाला!
टुजी थ्रीजी अनगिनत घोटाला!
दुजी ओर स्वप्न निवाला!
पर नहीं कोई है सुनने वाला!
होती यहा कागजी कार्यवाही!
तारीख तले दबती सुनवाई!
क्यूकि दबंग सियासत बुलंद किले!
और निर्धन को बेबसी मिलें!
यह भारत की स्तरविहीन सियासत है!
यहा निर्धन केवल आफत ही आफत है!
जिनके पल्ले दुखों की झड़ी है!!
मरे जिये फिक्र किसे पड़ी है!!
राजतंत्र के सब कोरे वादे!
अपनी ही जेबों के मशगूल इरादे!
जिसमें निर्धन का घरबार जले!
रोना भी मुहाल हुआ!
राजतंत्र को विलाप खले!
चुल्हा जले ना चक्की चले!
निर्धन तो बस भूखों मरे!
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