Saturday, January 28, 2012

हिंदुओ कि कड़बी हकीकत


हिंदुओ कि कड़बी हकीकत आपसी फुट ही है जिसकी वजह से ही हम दिन प्रतिदिन पतन की तरफ़ जा रहे है इसका सबसे बड़ा उदाहरण ठाकरे परिवार जो प्रदेश के नाम पर अपने ही हिंदू भाइयो के साथ बेहयाई भरा सलुक करने से भी बाज नही आते, यह हिंदू राष्ट्र के लिए बड़ी शर्म का विषय है कि अग्निवेश जैसे लोग अपने ही करोडो हिंदू समाज की आस्था श्री अमरनाथ में बर्फानी बाबा को महज प्रकृति की देन स्वरुप बर्फ का गोला कहकर अपमान कर सकते है, हम हिंदू धर्म और हिंदुस्तान के सम्मान में कुछ करना तो दूर अपनी मौनता से सहमति का भाव दर्शा रहे है तभी तो एम् ऍफ़ हुसैन जैसे लोग हमारी धरती माँ के और देवी देवताओं के नग्न चित्रों को बना कर अपनी कला का परिचय देते है और हम मौन रहते है! ८० करोड़ बहुसंख्यक हिंदू समाज आज यदि अपनी अभिव्यक्ति भी रखता है तो उसे भगवा आतंक का नाम दिया जाना कितना उचित है और तो और सभी राजनैतिक दल हिंदू विचार धारा का पुरजोर विरोध कर व अल्पसंख्यक समाज की अगुवाइ कर देश कि एकता में सेंध लगने का काम खुले आम करते है ऐसे में हिंदू धर्म का पतन स्वाभाविक है!   अक्सर स्वार्थपरकता के चलते लोगो के विचारों में परिवर्तन देखा गया है आज धर्म से हिंदू नेता  स्वार्थ के चलते अपने ही मंदिरों से किनारा कर बैठे है जिसका सबसे बड़ा उदाहरण कांग्रेस, सपा, बसपा जैसे दल जो मुस्लिम समुदाय को वोट की राजनीति के लिए इस्तेमाल करते है और उनके वोट मात्र के लिए अनैतिक बातों का समर्थन करते है जिसमें चाहे बहुसंख्यक हिंदुओं कि भावनाये ही आहत क्यों ना हो वह पीछे नहीं हटते!  जबकि राष्ट्रहित कि नजर से देखा जाए तो सर्वधर्म संतुष्टि आवश्यक है पर जब कोई हिंदू धर्म कि विरुद्ध गलत टिप्पणी करता है तो सियासत मौन तमाशा देखती ही और इसके विपरीत अल्पसंख्यक के विषय में उठी हर छोटी बड़ी बात संसद के गलियारे में गूँज उठती है! 

Tuesday, January 24, 2012

तुम


तुम क्यू खो गए हो,

इस जगत की भीड़ में!


खड़े भी नहीं हो सकते,


क्या हो गया रीड़ में!


बेमानी कि राह चले,


क्यू सेंध लगी जमीर में!


क्यू ऐसी ख़ुदगर्जी है, 



की बेदर्द हुए पराई पीर में!

सोच के परे जो बदनसीबी,


आई वह घड़ी देश की तक़दीर में! 


पहचान खो चुके तुम अपनी,


अन्तर नहीं तुममे और फ़कीर में!


तुम क्यू खो गए हो,


इस जगत की भीड़ में!

Monday, January 23, 2012

गरीबों कि फौज


गरीबी हस कर बोली,
अमीरी की औकात क्या है!
घर घर तो मै ही छाई हूँ,
अमीरी की बात कहा है!
चारों ओर मेरे भुक्तभोगी!
धनाण्य की जमात कहा है!
जब तक मेरे साथ सियासी!
तरक्की निर्धन के हाथ कहा है!
यह वर्ग पिसेगा जीवन पर्यंत!
राजतंत्र इनके साथ कहा है! 
तंग हाल गरीबी इनकी जुती से!
पिघलते हुए जज़्बात कहा है!
बहुतायत गरीबों कि फौज खड़ी!
उनके दर्द से राजनीतिज्ञों को आघात कहा है! 
इसलिए..........
गरीबी हस कर बोली,
अमीरी की औकात क्या है!
घर घर तो मै ही छाई हूँ,
अमीरी की बात कहा है! 

Sunday, January 22, 2012

विचार


विचार कब कहा कैसे आते है!
यह तो मुझको पता नहीं!
पर मन में हलचल दे जाते है!
जिसकी कोई इंतिहा नहीं!
कुछ के जबाब मिल पाते है! 
पर कुछ की सूरत पता नही!
जिज्ञासा में कब हम थक जाते है!
मन भीतर निश्चित व्यथा नहीं!
कुछ विचार प्रफुल्लित कर जाते है!
सदैव मन मंथन की प्रथा नहीं! 
खट्टे मीठे अनुभव अपनी बुनियादे है!
जो परिणामो से लापता नहीं! 
झंझावर विचारों का सब कहा सफल हो पाते है!
पुना प्रयत्न करना है मुझको,
असफलता कोई खता नही!
विचार कब कहा कैसे आते है!
यह तो मुझको पता नहीं!

संसद भी शर्मिंदा बेहद


क्या हुआ क्यू आज हम याद आए!
विगत पाँच वर्ष तो आप नजर न आए!
पहले भी थे आपके बुलंद इरादे!
किए थे पहले भी आपने कई वादे!
सत्ता क्या मिलीं सब भूल गए!
पिछले चुनावी वादे तो फिजूल भये!
फिर वही पुरानी प्रक्रिया दोहराने!
आए है आप क्यू हम्हारे मुहाने!
बतलाये तो सही इस बेशर्मी कि कोई हद है
आपकी गुस्ताखी से संसद भी शर्मिंदा बेहद है!
आप फिरका परस्त जो कभी बाज़ ना आए! 
अपनी नाजायज करनी पर तुम्हें शर्म न आए! 
जो ईमान धर्म को ताख रख लूट मचाये!
हल नहीं मिलता कैसे तुमसे देश बचाये!
बाहरी शत्रु का पता आपके घर से होकर जाए!
फिराक में आप की कैसे देश को बेचा जाए!
मुश्किल यह जान कर भी हम कुछ ना कर पाये!
बस बेबस हो पुछते...........?
क्या हुआ क्यू आज हम याद आए!

Saturday, January 21, 2012

तेज भागती गाड़ीया


क्यू……………….?
हर रोज़ चौराहे पर तेज भागती गाड़ीया!
क्यू……………….?
रफ्तार के जुनून को लांघती साँवरिया!
मंज़िल मिलेगी किसी को ख़बर ही नही!
जिंदगी किस मोड़ रुकेगी ख़बर ही नहीं!
कहीं पहुँचने कि जल्दी और सबर ही नहीं!
दुर्घटना से भली देर, इन पंक्तियों का असर ही नहीं!  
किसी की रफ्तार, कोई हादसे का शिकार!
इस अंधी भीड़ में मरते हर पल दो चार!
बस उसके पीछे रह जाता बिलखता परिवार!
ना खत्म होने वाला बेबस इंतज़ार!
पर पल भर भी न ठहरती शहर की रफ्तार!
हादसों के पीछे रह जाती सिसकारिया!
यह सोचने का मौका क्यू ख़ुद को ना दिया!
क्यू……………….?
हर रोज़ चौराहे पर तेज भागती गाड़ीया!
क्यू……………….?
रफ्तार के जुनून को लांघती साँवरिया!

Friday, January 20, 2012

नन्ही


  • नन्ही सोजा आज भूख को भुला दे!
    ये दुद्र्शा जीवन सांगनी है!
    तू अपनी सहन शक्ति को जगा दे!
    निरासित जीवन किस्म्त की करनी है!
    जिस घर तुने आँखें खोली है!
    ... वहा नहीं खुशियों कि झोली है!
    मत रो, यु ना विलाप कर!
    मान ले दुःख अपने हमजोली है!
    विपदा और मुसीबत संग साथ है!
    समाज कि सहमी सकुची अपनी बोली है!
    यू आशा भारी निगाहें तेरी!
    देख मै असाहाय घुटति मन में ही!
    तेरे मन कि कुछ कर मै सकूँ!
    नन्ही ऐसी किस्मत नही बनी है!
    नन्ही सोजा आज भूख को भुला दे!
    ये दुद्र्शा जीवन सांगनी है!
    तू अपनी सहन शक्ति को जगा दे!
    निरासित जीवन किस्म्त की करनी है!
    गरीब, गरीबी से मरता है!
    जब तब फाका करना पड़ता है!
    आदत नही पर जान ले नन्ही,
    इतने बड़े जहान में,
    अपनी बात नही बननी है!
    यु ही थपेड़े खाने है जीवन के तूफान में!
    कैसे दिखलाऊ तुझको सपने!
    जो जन्म साथ दुश्मन है अपने!
    जीवन की इस कठिन डगर पर!
    सच सामना किया अगर!
    तो आँखों का बहता पानी!
    और दुखों में होना जज्बाती!
    दोनों ही किनारा कर लेंगे!
    मेरा कहा मान ले नन्ही!
    हर आग से लड़ना सीख ले नन्ही!
    जीवन का यह पहला पहर है!
    अभी तो शुरू हुआ सफर है!
    अपने नन्हे से मन को समझा दे!
    और हर दिन प्रतिदिन विपदा दुगनि है!
    नन्ही सोजा आज भूख को भुला दे!
    ये दुद्र्शा जीवन सांगनी है!
    तू अपनी सहन शक्ति को जगा दे!
    निरासित जीवन किस्म्त की करनी है!

हर दर्द बेदर्द


किसी के दर्द से अगर दर्द होता!
तो यकीनन हर दर्द बेदर्द होता!
न तुम दुखाते दिल मेरा!
न मेरा दिल भी खुदगर्ज होता!
तेरी टीस मेरी आह होती!
सोचो जब एक ही राह होती!
तो उसे अपनाने में कोई हर्ज ना होता!
हमसे पनपा जमी पर कोई मर्ज ना होता!
न तुम दुखाते दिल मेरा!
न मेरा दिल भी खुदगर्ज होता!
जुबान की कालिख होती इंद्र्धनुश!
यू लुप्त न होता धरा से मनुस्य!
आँखों में अश्रु खुशियो के बह्ते!
मै कि जगह हम शकुन से रहते!
बेबुनियादी बाते ना उभरती!
असल मुद्दे पर आते,
ना तेरी ही गलती ना मेरी ही गलती!
मौके बेमौके मेरी कमी तूझे खलती!
मुझे तेरी आहट से राहत ही मिलती!
किसी को किसी कि बाते ना चुभती!
अंधेरगर्दी पर किसी का तर्ज ना होता!
गुनाहो का खाता यु दर्ज न होता! 
न तुम दुखाते दिल मेरा!
न मेरा दिल भी खुदगर्ज होता!
किसी के दर्द से अगर दर्द होता!
तो यकीनन हर दर्द बेदर्द होता!

न जाने!


  • मै चलते चलते यह कहा निकल आया!
    शांत वादियों से दूर घनी आबादी जहा!
    एकांत में बसे गाव से जहा अपने थे सभी!
    वे साथी जितने सुख के उतने दुःख के भी
    ठीयाव बदलने से पहले ना सोचा था कभी!
    ... मतभेदों भरी होगी आने वाली जमी!
    यहा आबादी जरूर पर मन मिलें ना कभी!
    क्योकी यहा एक दूसरे के प्रतिद्वदी है सभी!
    यहा किसी को किसी का साथ रास ना आया!
    न जाने,
    मै चलते चलते यह कहा निकल आया!
    अंत नहीं सोच पर, पर द्वंद मचे सोच पर!
    बहुमंजिला इमारतें इर्शा की बुनियाद पर!
    जीवन पर हाबी जहा मौत का मकाम है!
    सिसकी भरी जिंदगी हुई जहा सरेआम है!
    बेहंताया फिक्र अपनी चाहे दूसरा बरबाद हो!
    फकीर कब्र पर जहा मैखाने आबाद हो!
    तंग हाल उम्र को जहा भागते पाया!
    बेबसी ने जहा हर यकीन को रुलाया!
    न जाने,
    मै चलते चलते यह कहा निकल आया!
    जो था वह कम लगा,
    छोड़ उसको कोसों दूर मै चला आया!
    देखने को तो मन माफिक ही पाया!
    पर उदासी और अकेलापन हुआ हमसाया!
    ख़ुद को गैरियत कि चोट से चोटिल पाया!
    जो साथ वह कितने साथ समझ ना आया!
    आज के हालात पर यह दिल भर आया!
    उन गालियों में आत्मा आज भी भटकटी है!
    क्योकी इन गलियों में तलवार ही लटकती है!
    बीत गयी सदिया यहा पर अपना ना कहाँ पाया!
    न जाने,
    मै चलते चलते यह कहा निकल आया!

Wednesday, January 18, 2012

सरकार-ए-ज़फा रात


  • .बुनयादी हक से बेदखल इंसान और घायल कायेनात हुयी!
    ...........सियासत कि राह पर ह्जुम कि शय फिर मात हुयी!
    .........कोसों दूर उम्मीद से और बेउम्मीदी से मुलाकात हुई!
    .............सही कहा हुजुर आपने के सरकार-ए-ज़फा रात हुई!
    सियासी वादों का क्या,वादा कर मुकर जाना आम बात हुई!
    तंग जिदगी जब अपनी तो उनकी हर सुबह बाराबफात हुई!
    ..........दिल तोड़ना आदत उनकी और बेमायेने जज़्बात हुई!
    .......आजादी तो नाम की, असल में गुमनामी संग साथ हुई!
    ...........................बात में दम है के सरकार-ए-ज़फा रात हुई!
    ..बुनयादी हक से बेदखल इंसान और घायल कायेनात हुयी!
    ...........सियासत कि राह पर ह्जुम कि शय फिर मात हुयी!

Monday, January 16, 2012

बारुदी खेल


कब कैसे हुआ बारुदी खेल यह मुझको नहीं पता!
फिर भी शक़ से भरी निगाहें मुझको रही सता!
मेरे भी घर आँगन में बच्चे सहमे सहमे से है!
मेरा भी दिल खौफ ज़ैदा इस आतंकी खेमे से है!
हम नवाजी मुस्लिम है और पसंद अमन का रस्ता है!
दिल में खुदा की रहमत से हिदोस्ता ही बसता है!
हिंदू मुस्लिम सिख तो मजहब, इसमें आतंकी किसे रहे बता!
मजहब से ना जोड़ ए बंदे शैतानी आतंक की खता!
कब कैसे हुआ बारुदी खेल यह मुझको नहीं पता!
फिर भी शक़ से भरी निगाहें मुझको रही सता!

प्यारे तेरे बोल


शब्दों का फेर इसी में प्यार और इसी में धुत्कार!
ग्लास आधा खाली या आधा भरा क्या बोलना स्विकार!
शब्दों का फेर इसी में प्यार और इसी में धुत्कार!
मीठी वाणी या तीखे बोल क्या सही कर तो यह विचार!
मौत सबका अन्तिम है पड़ाव बचे शेष दिवस अब चार!
शब्दों का फेर इसी में प्यार और इसी में धुत्कार!
सब रह जायेगा क्या जमीन धन दौलत क्या व्यापार!
जग में रह जायेंगे प्यारे तेरे बोल तो असली दौलत को संभाल!
शब्दों का फेर इसी में प्यार और इसी में धुत्कार!

Sunday, January 15, 2012

मकर संक्रान्ति


 
मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रान्ति पूरे भारत में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है जब इस पर्व को मनाया जाता है । यह त्योहार जनवरी माह के तेरहवें, चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ( जब सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है ) पड़ता है । मकर संक्रान्ति के दिन से सूर्य की उत्तरायण गति प्रारम्भ होती है । इसलिये इसको उत्तरायणी भी कहते... हैं। तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल 'संक्रान्ति' कहते हैं !
माना जाता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं।
प्रातः स्नान
सूर्य नमस्कार
दान चावल स्पर्श
सबके नाम से सीधा (दान)
तिल गुड का भोग
... नाना प्रकार के लाइ!
मकर संक्रांति की पावन सुबह है ये
सभी को बधाई!
 

अपनी किस्मत


अपनी किस्मत को अपने आप लिखो!
जिन्दगी पर एक खुली किताब लिखो!
दूजो कि खामी कहना भाइ बड़ा आसान है!
भूल ना बंदे ख़ुद से ही तू ज्यादा परेशान है!
तो अपनी ही खामी कि फेहरिस्त लिखो!
... ख़ुद से ख़ुद की पाबंदी पर एहतराम लिखो!
गिर कर उठना, उठ कर गिरना यह तजुर्बे-ए जहान है!
पर हिम्मत मर्दे, मर्द-ए खुदा, जो माने वह इंसान है!
नई सोच और बुलंद इरादे अपनी एक पहचान लिखो!
जीत जाए जो अंधेरे से ऐसी एक जबान लिखो!
अपनी किस्मत को अपने आप लिखो!
जिन्दगी पर एक खुली किताब लिखो!

जाने क्यू जवान हुआ!


हार गया मै थक गया, जाने कितना परेशान हुआ!
उलझे मन से बुझ रहा कैसा विधि का विधान हुआ!
क्यू कैसे प्रोण हुआ और क्यू बालक से जवान हुआ!
बचपन था अपना सुगम सुनहरा, अब विपदाओं कि खान हुआ!
जिसकी कोई पहचान नहीं क्यू ऐसी पहचान हुआ!
... अच्छा भला था बाल्यकाल जाने क्यू जवान हुआ!
पल में मचलना पल में झगड़ना जब अपने पिता के आँगन था!
तब सर्दी गर्मी की क्या चिंता, तब माँ का स्नेही आँचल था!
अब दूर देश परदेश में और यादों में घर जहान हुआ!
रोजमर्रा की भाग दौड़ से अपना मन हैरान हुआ!
हार गया मै थक गया, जाने कितना परेशान हुआ!
अच्छा भला था बाल्यकाल जाने क्यू जवान हुआ!
छोटी बड़ी कैसी भी हठ हो झट से पूरी होती थी!
मेरी आँखों में सपने देकर तब जाकर माँ सोती थी!
सर्द कुहासे कि सुबह में मेरे पिता का नित उठ जाना!
विद्यालय की घंटी से पहले हमको नित विद्यालय पहुँचना!
अपनी जरूरत को भूल भाल कर खुशियों का अंबार दिया!
एक पल भी बिसार सकूँ ना ऐसा हमको प्यार दिया!
ढूँढ रहा मन मेरा जाने वह पल कहा अंतर्धान हुआ!
शांत समुंदर की लहरों सा मन में यह तूफान हुआ!
हार गया मै थक गया, जाने कितना परेशान हुआ!
अच्छा भला था बाल्यकाल जाने क्यू जवान हुआ!

उम्र का वह दौर


उम्र का वह दौर सोच कर भी मेरा मन आज भी गुदगुदाता है!
वह चौदहा पंद्रहा कि उम्र थी जब दिल किसी का भी मचल जाता है!
किसी को चुपके से देखना और बदले में उसका मुस्क्राना याद आता है!
देर रातों की करवटे और जब चाँद में उसका ही चहेरा नजर आता है!
उम्र का वह दौर सोच कर भी मेरा मन आज भी गुदगुदाता है!
... दिल में महफूज हमदम से इज़हार-ए मोहब्बत कहने की काबलियत ना थी!
दिल ने जिसे मान लिया अपना वह किसी और कि हो यह हसरत न थी!
सौ बार लिखता था नाम उसका हथेली पर कहो क्या वह मोहब्बत ना थी!
उसको ही जिंदगी का दर्जा दिया ख़ुद कि जिंदगी की असलियत ना थी!
यार दोस्तों की चुटकियों से मेरे दिल में जब एक करंट सा दौड़ जाता था!
वह वक्त था जब वक्त बेवक्त मै मोहब्बत के नग्मे ही गुनगुनाता था!
खुदा माफ करे मुझे तब खुदा से पहले महबूब का नाम याद आता था!
अजब बात थी बिना अल्फाज जब आंखो ही आँखों में समय गुजर जाता था!
आशिकी का वह आलम था की मै शायर और वह मेरी जाने ग़ज़ल थी!
जिस दिन दीदार ना हो उस दिन कि हर घड़ी गुमसुम और बोझील थी!
जिसकी यादों से आज भी जवानी का रंगे-ए गुलाल घुल जाता है!
खुदा माफ करे मै अपने आज से बेबफा नहीं पर वह याद बहुत आता है!
उम्र का वह दौर सोच कर भी मेरा मन आज भी गुदगुदाता है!
वह चौदहा पंद्रहा कि उम्र थी जब दिल किसी का भी मचल जाता है!

सलाह/चेतावनी

सलाह= भारतीय जनता पार्टी की पहचान अटल जी से है इस लिए वोट अपील उनके माध्यम से भी जरूर हो माना अटल जी आज उम्र के उस दौर में है जब वह पूरी तरह चुनावी गत्विधियो में हिस्सा नहीं ले सकते पर यदि उनका अल्प समय भी यदि पार्टी प्रचार में हासिल हो सका तो निश्चित रूप से चुनावी आँकड़ों में उपलब्धि प्राप्त होगी!
चेतावनी= कल्याण सिंह के वर्चस्व को भूली भारतीय जनता पार्टी को यदि अपनी पार्टी की गरिमा को पुनः स्थापित करना है तो फिर से आंकलन करना होगा अपने उठाये हुए कदमों का, आज जरूरत है कल्याण सिंह, कटियार, उमा भारती जैसे तैज़ तर्रार नेताओं की वरना आगामी चुनाव में शिकस्त का दौर जारी रहेगा!

Friday, January 13, 2012

पहचान

सुंदर और सजेले चहरे, जाने कितने उजले कितने फीके!
किसकी क्या पहचान करे सब ही पर नकाब दिखे!
मुँह में राम बगल छुरी और नाम सभी सत्यवान लिखे!
पल में पलटी खाए ऐसे की दो पैसे में ईमान बिके!
सुंदर और सजेले चहरे, जाने कितने उजले कितने फीके!

तेरा खयाल


बीते तमाम दिनों जब भी तेरा खयाल आया!
बिन तेरे ऐ दोस्त ख़ुद को बड़ा अधूरा पाया!
गमजदा दिल ने सोचा के कलाम लिख दू!
एक दोस्त को दोस्ती का सलाम लिख दू!
मिलने की ख्वाहिश तुझमे भी तमाम होगी!
... हर दिन की कोई घड़ी तो मेरे भी नाम होगी!
अपनी कहूँ तो एक पल भी तुझे भुला न पाया!
बिन तेरे ऐ दोस्त ख़ुद को बड़ा अधूरा पाया!
मिलना हुआ मुश्किल तो सोचा पैग़ाम लिख दू!
वक्त की किताब पर तेरा नाम ही लिख दू!
बीते दिनों को दोहराने की हसरत तुझमे भी होगी!
अपनी दोस्ती के नाम जब मुकम्मल सुबह शाम होगी!
बिन तेरे तो मैंने वक्त को बड़ा अधुरा पाया!
यकीनन यह जिंदगी धूप और मै घना साया!
बीते तमाम दिनों जब भी तेरा खयाल आया!
बिन तेरे ऐ दोस्त ख़ुद को बड़ा अधूरा पाया

खुशनसीब


मुश्किलों ने हर मुश्किल से लड़ने हिम्मत दी!
वरना यह जिंदगी मौत से पहले ही तमाम थी!
गर्दिशो की घड़ी तो असल में एक इम्तहान थी!
खुशनसीब हूँ वरना मेरी शिकस्त तो सरेआम थी!
हर दौड़ में जीत ही हो हासिल यह जरूरी तो नहीं!
... वह बात और के दूसरे मौके की हम्हे हसरत ही नहीं!
सीखने में मजा, जीतने में मजा, यही जिदगी है दोस्त!
फिर क्या हार फिर क्या जीत, किस बात से है कोफ्त!
हर तजुर्बे से जो मिलें उसे मान कर खुदा-ए रहमत!
तरक्की ख़ुद बा ख़ुद कदम होगी, नाकामी की क्या जहमत!
यकीनन इसी जज्बे ने जीने की कुबत दी है!
वरना बेबसी पर रोना इंसानी फितरत ही है!
मुश्किलों ने हर मुश्किल से लड़ने हिम्मत दी!
वरना यह जिंदगी मौत से पहले ही तमाम थी!