Friday, December 16, 2011

आंदोलन

लुटे अपने ही घर में कि दिलों दिमाग में अजब घबराहट है!
शुक्र है अण्णा के आंदोलन से लगी बदलाव की आहट है!
आक्रोशी जनता में अब फिर से कुछ करने की चाहत है!
राजनितिग्य खेमों में छायी जानआंदोलन से विचित्र आफत है!

सोने की चिड़िया


प्यासी धरती क्यू है आज, दरिया क्यू नहीं बहता!
यह सोने की चिड़िया थी, अब भूखों इंसा यहा मरता!
कलफता है दिल सबका, कोई अब चैन नहीं भरता!
यह मेरे दिल की उलझन है, जो कोई सुलझा नहीं सकता!
मौजूदा हाल से बेहाल इंसा आपस में है लड़ता!
पर सियासत करने वालों पर कोई लगाम नहीं कसता!
क्यू चुप्पी सबने साधी है, कोई कुछ आज नहीं कहता!
वीरों की इस धरती पर, क्या उबलता लहू नहीं बहता!
रोष और जोश का संगम, नाहक अन्याय क्यों सहता!
मन्दिर मस्जिद का झगड़ा, जबकि खुदा दिल में है रहता!
यही धंधा राजनीति का जो सबकी फूट में फलता!
हालातों से समझौता, भला हर इनसान क्यू करता!
मौत से बत्तर है जीना, फिर क्यू मौत से डरता!
आंदोलन एक परिवर्तन है, विद्रोह क्यू नहीं करता!
प्यासी धरती क्यू है आज, दरिया क्यू नहीं बहता!
यह सोने की चिड़िया थी, क्यू भूखों इंसा यहा मरता!

Tuesday, December 13, 2011

तेरी अपील और यह मेरी अपील


हर किसी चौराहे पर है एक ही चर्चा !
कमाई चवन्नी और अठन्नी है खर्चा !
दो जून की रोटी कमाना है मुश्किल!
बच्चों के सपने करे कैसे मुकम्मिल!
सत्ता के ठेकेदारो ने किया हाल बेहाल!
त्रासदी का आलम और जनता हलाल!
हर तरफ़ पसरी दर्दे कहानी यही है!
रोकर भी हासिल अब कुछ नहीं है!

चलो इंतकाम की आवाज़ बुलंद हम करे!
अण्णा के आवाहन पर फिर जेल हम भरे!
समय आ गया जन ताकत दिखा दो!
आंदोलन के सुर से सुर को मिला दो!

आवाज़ हो बुलंद कि तख्तों ताज हिला दो!
मृत हुए सपनों को आज फिर से जिला दो!
देखो यह मौका दोबारा आया के ना आया!
दमखम की चूक से ना हो कोशिस यह जाया!
क्योकी यह तेरी अपील और यह मेरी अपील!


संसद कि अवमानना


संसद कि अवमानना सांसद ख़ुद कर रहे है और दोष अण्णा के सर मड़ रहे है, भाइ आज सांसद आपस में जुत बजाते है अभद्र भाषा का प्रयोग करते है सरकार बनाने के लिए ख़ुद का मोल तय करते है करोड़ों में अपने को बेच अपना मत देते है, पद की प्रतिष्ठा को दाँव पर लगा कर घोटाले करते है तब आप ही बताये जो ख़ुद कानून कि धज्जिया उड़ाते है उन्हें सीना चौड़ा कर के यह कहने का अधिकार की कानून संसद में बनता है सड़कों पर नही किस लि...ए दिया जाए? अण्णा जनता का ही प्रतिरूप है जो सियसतगारो से हक कि लड़ाई लड़ रहा है माना वह कानून की पेचिदकी से वाकिफ नहीं है पर जनता के दर्द से रूबरू है और इस नाते उनका विद्रोह जायज है तभी उनके साथ हर प्रदेश, हर वर्ग, हर जाति के लोग कंधे से कंधा मिला रहे है, आने वाले समय में आंदोलन का प्रसार और विस्तार दोनों ही विशाल स्वरूप में परिवर्तित होगा, मेरी अपील देश के सभी भाइ बहनों से है की जुनून कि इस आँधी को दिन और दोगुनी रात चौगुनी बड़ाये अगर देश को भीतरी गद्दारो से बचाना है अण्णा के मंच से कुछ नेताओं ने कहा की सारे नेतो के चरित्र पर उंगली उठाना नाजायज है तो प्रतिउत्तर में कहना चाहुंगा कि यदि उन नेताओं का कोई सहयोगी भ्रष्टाचार के मामले मए लिप्त है और वे अनभिज्ञ बने हुए है तो वे भी भ्रष्टाचार कए भागीदार है इस लिए अपने चरित्र का प्रमारपत्र ना दे बल्कि आकलन करे की वे कहा ग़लत है, यदि आज यह आकलन ख़ुद ना किया तो जनता अब ख़ुद हिसाब मानगेगी!

Friday, December 2, 2011

दुश्मन सियासी


हवाओं में किसने घोल दिया जहर!
किसने लगाई हर नजर पर नजर!
किसकी वजह से बेसुद यह शहर!
खौफ से भरे क्यू यह सारे पहर!
बेलगाम लोगो पर किसकी महर!
मौन क्यू हम क्यू सह्ते है कहर!
लहू शिराओं का गया क्यू ठहर!
जागो जगाओ फिर से वह लहर!
यह देश हम्हारा और हम्हारा शहर!
मिटा दो उन्हें जिन्होंने घोला जहर!
चप्पे चप्पे पर हो जुनुने नजर!
आज भी ना की जो हमने फिक्र!
तो गद्दारो में आयेगा अपना भी जिक्र!
की अपनी ही माटी को सजा ना सके!
देश कि अस्मत को बचा ना सके!
करो देश के लिए कुछ जद्दो जहद!
वरना गुलामी सहेगी अपनी ही सरहद!
जागो रे जागो ऐ हिंद के वासी!
देश के भीतर यह दुश्मन सियासी!
इनसे ही देश में फैला जहर है!
इनके दम से कहर ही कहर है!
जागो जगाओ फिर से वह लहर!
यह देश हम्हारा और हम्हारा शहर!