Wednesday, November 30, 2011

देश के नेता

हुआ पहुँच से बाहर अपने मन का सपना!
चैन छीन के ले गया मेरा ही कोई अपना!
जिसके हाथों सौपी थी हमने तक़दीर अपने देश की!
उसने ही धूमिल कर दी सूरत इस परिवेश की!
बेच दिया दीन ईमान दौलत के लालच में आकर!
सत्ता कि भूख अजब है, बैठा देखो देश डकार कर!
रोजी रोटी को तरसे गरीब, बिन छत छोटे बच्चे सोये!
महंगाई की बेमौत से कितनों ने अपने प्रिय खोये!
खुशिया तो एक सपना हो गयी, दुखो कि पहर अनिश्चितकाल!
अभी यह हालात है, सिहर जाता मन सोच कर कल का हाल!
वाह रे देश के नेता कुछ तो अब रहम करो!
यह देश तुम्हारा अपना है शर्म करो शर्म करो!
जीते जी मौत तो फाँसी का बंधन कितना है कसना!
जनता के आँसू पर जाने क्यु  उनको अआता है हँसना!
हुआ पहुँच से बाहर अपने मन का सपना!
चैन छीन के ले गया मेरा ही कोई अपना!

न्यूडिटी

कही दिखावे के बाज़ार कि नुमाइश के खातिर!
और कहीं मुश्किल हालातों ने किया जगजाहिर!
किसी से मत पूछ ऐ दोस्त यह दस्तूर क्यू है!
कही मजबुरिया तो कहीं शौक-ए दस्तूर यु है!
कोई तन से है नंगा और कोई मन से है नंगा!
यह हालत बद से बत्तर ही होंगे!
क्युकी मन से न तू ही है चंगा न मै ही हूँ चंगा!
सभी हाथ धोते मिलेंगे यहा, जब तक मिलेगी बहती हुई गंगा!
फिर काहे को पूछें किसी से भाइ, न्यूडिटी में नहीं जब कोई पंगा!
क्युकि कोई तन से है नंगा और कोई मन से है नंगा!

Tuesday, November 29, 2011

“दलदल “

देशहित पर आस्था, सदभाव का रास्ता !
सेवा का भाव और जनता से वास्ता !
यह उसूल राजनीति के, पर कौन इसे निभाता है !
हर दल में दलदल है हर नेता लूट के चला जाता है !
फायेदे कि नीति कायेदे पर भारी है !
जनता का शोषण खुल के जारी है !
नाम का चुनाव लुट की तैयारी है !
गर्व से कहते है अब मेरी भी बारी है !
थक के हाफ्ता, बड़ती महंगाई से कापता !
बेबस हो चिल्लाता पर न सुने कोई दास्ता !
यह हालात आम जनता के, कौन मल्हम लगाता है !
हर दल में दलदल है हर नेता लूट के चला जाता है !
अब सत्ता पर आस्था, दबंगई का रास्ता !
लूट का भाव और निजिहित से वास्ता !
नए उसूल राजनीति के, हर नेता इसे निभाता है !
हर दल में दलदल है हर नेता लूट के चला जाता है !

Monday, November 21, 2011

इनसान

इनसान कि फितरत का अजब तमाशा तो देखो,
किसी के लबो पर मुस्कान से हताशा तो देखो!
किसी को भी अपनी चोट इतना दर्द नही देती,
जबकि दुजे के उभरने पे खूने आँसू रुला देती!
ख़ुद से बेखबर लोगो के लिए जिज्ञासा तो देखो,
साथी साथ नहीं गैरियत का आँखों में कुहासा तो देखो!
अजब गैरियत मामुली बात पर रिश्ते भुला देती है,
जाने क्यू अपनी ही बात अपनों को रुला देती है!
इनसान कि फितरत का अजब तमाशा तो देखो,
किसी के लबो पर मुस्कान से हताशा तो देखो!

Friday, November 4, 2011

खुशिया !


खुशियो कि दिशा में कदम और कदमों को चुमती खुशिया !
दोनों के फासले क़रीब पर मिटती नहीं क्यू यह दुरिया !
अपने छोटे से दिल के कोने में बसी अनगिनत तमन्नाये !
दिल खुशियों से होता पागल जो एक भी मंज़िल  पाये !
हम सबकी खुशियों कि परिभाषा रिश्तों कि डोर से है !
अनुभुतिया समान कोई इस ओर से है कोई उस छोर से है !
अपने से कही ज्यादा जो जुड़ी दिल के क़रीब चितचोर से है !
नन्हे लाल कि किलकारियो में माँ कि खुशियों कि थाह नही !
साँझ ढले जब घर लौटे तो हर इंसा का सच्चा हर्ष प्रवाह वही !
पत्नी खुश जब पति के बागवाँ में सुकून कि बयार बहे !
अध्यापक हर्शित जब शिष्य जीवन के पथ में सफल रहे !
मातृभूमि् प्रसन्न जब हममें सर्वसुख सदभावना बनी रहे !
बहन भाई तो एक दुजे की कुशलछेम से अतिप्रसन्न रहे !
मित्रों कि खुशी मात्र मित्र के संग साथ से है !
प्रेमी की खुशी प्रेयसी के जीवनपर्यंत साथ से है !
पड़ोसी की खुशी हसती खेलती मुलाकात से है !
हर रिश्तो में खुशी प्रेमपूर्वक मेलमिलाप में है !
यानी खुशिया अपनी अपनों से ही है जिनसे आज दूर हुए !
चलो मिटाए भेद हम मन के चलो खुशियों को फिर से छुए !
खुशियो कि दिशा में कदम और कदमों को चुमती खुशिया !
दोनों के फासले क़रीब पर और मिट जायेंगी यह दुरिया !