हुआ पहुँच से बाहर अपने मन का सपना!
चैन छीन के ले गया मेरा ही कोई अपना!
जिसके हाथों सौपी थी हमने तक़दीर अपने देश की!
उसने ही धूमिल कर दी सूरत इस परिवेश की!
बेच दिया दीन ईमान दौलत के लालच में आकर!
सत्ता कि भूख अजब है, बैठा देखो देश डकार कर!
रोजी रोटी को तरसे गरीब, बिन छत छोटे बच्चे सोये!
महंगाई की बेमौत से कितनों ने अपने प्रिय खोये!
खुशिया तो एक सपना हो गयी, दुखो कि पहर अनिश्चितकाल!
अभी यह हालात है, सिहर जाता मन सोच कर कल का हाल!
वाह रे देश के नेता कुछ तो अब रहम करो!
यह देश तुम्हारा अपना है शर्म करो शर्म करो!
हुआ पहुँच से बाहर अपने मन का सपना!
चैन छीन के ले गया मेरा ही कोई अपना!
चैन छीन के ले गया मेरा ही कोई अपना!
जिसके हाथों सौपी थी हमने तक़दीर अपने देश की!
उसने ही धूमिल कर दी सूरत इस परिवेश की!
बेच दिया दीन ईमान दौलत के लालच में आकर!
सत्ता कि भूख अजब है, बैठा देखो देश डकार कर!
रोजी रोटी को तरसे गरीब, बिन छत छोटे बच्चे सोये!
महंगाई की बेमौत से कितनों ने अपने प्रिय खोये!
खुशिया तो एक सपना हो गयी, दुखो कि पहर अनिश्चितकाल!
अभी यह हालात है, सिहर जाता मन सोच कर कल का हाल!
यह देश तुम्हारा अपना है शर्म करो शर्म करो!
जीते जी मौत तो फाँसी का बंधन कितना है कसना!
जनता के आँसू पर जाने क्यु उनको अआता है हँसना! हुआ पहुँच से बाहर अपने मन का सपना!
चैन छीन के ले गया मेरा ही कोई अपना!