Tuesday, October 18, 2011

जीवन एक पहेली


कुछ को असमंजस में जीना स्वीकार पर कुछ ने मन में ठानी है!
जीवन एक घनघोर पहेली है जिसकी हर उलझन सुलझानी है!
वेदों से यह मिला ज्ञान कि मनु देह वायु अग्नि और पानी है!
फिर भी इन तत्वों के मात्र प्रकोप से होती क्यू खत्म कहानी है!

अजर अमर जब जीव आत्मा फिर क्यू जीवन आनी जानी है!
जो कल तक थे साथ हम्हारे क्यू उनकी कथा अब पुरानी है!
प्रश्न यही कि म्रत्यु उपरांत किस ठोह बसती यह ज़िंदगानी है!
कल अपना भी चिरनिंद्रा है फिर भी मोह माया अजब सी हैरानी है!
बाल्यावस्था चिंतारहित, वृद्ध देह कष्ट भरी और आती याद जवानी है!
मेरे हठी  मन के प्रश्न अनेक, सो अंतरमन को सही दिशा दिखनी है!
कुछ को असमंजस में जीना स्वीकार पर कुछ ने मन में ठानी है!
जीवन एक घनघोर पहेली है जिसकी हर उलझन सुलझानी है!

Wednesday, October 12, 2011

मृत्यु अंत पड़ाव

निरी गुमसुम सी रातों में जीवन एक पहेली है!
दुनिया के इस मेंले में जिंदगी बड़ी अकेली है!
जीवन का एक सत्य जो जीवन पर भी भारी है!
मृत्यु अंत पड़ाव है मिथ्या यह जीवन संसारी है!
फिर क्यू कलेश इर्शा हर से लड़ने की तैयारी है!
मन कि कोमलता विलुप्त हुई बदले की अंगारी है!
सुख कि परिभाषा बदल गई जो दुजे के सुख में तड़प गई!
अपनी तो अब याद नही हा दुजे कि मुस्कान खटक गई!
जाने कैसा रोष है उपजा कि बैरी यह संसार हुआ!
अपनों की गिनती में अब तो ख़ुद को गिनना दुस्वार हुआ!
जब बोया पेड़ बबुल का तो फिर पुष्प कहा से मह्केंगे!
निरे घमंड के नशे में चूर तो कदम तो अब यह बहकेंगे!
बदलो जागो स्तिथी भापो, कैसी यह बैयार चली है!
सोचो क्यू जहरीले पथ पे यह जिंदगी बड़ चली है!   
निरी गुमसुम सी रातों में जीवन एक पहेली है!
दुनिया के इस मेंले में जिंदगी बड़ी अकेली है!