Friday, September 30, 2011

बदलते मौसम

उम्मीद न थी,कि तुम ही उम्मिदो पर पानी फेरोगे!
तेरे पग से चुने काटे थे, अब तुम ही रास्ता घेरोगे!
यह कसुर तुम्हारा नही, यह आज कि आबो हवा है!
बदलते मौसम में, कब कोई हरदम किसी का रहा है!
मेरी आँखों ने दिन में सपने की बुनियाद थी रखी!
हर शक़ पर बेशक़ कि बेवजह फिरियाद थी रखी!
अरे बेदर्द, है दोस्त तू मेरा यह सोच के शर्मशार हूँ मै!
और अब इस गुनाह कि सजा का ख़ुद तलबगार हूँ मै!
नजंदाज कर चुके तुम, पर लगता है कभी तो देखोगे!
यह हाल बेहाल तझसे, आस यही कि कभी तो सम्झोगे!
उम्मीद न थी कि तुम ही उम्मिदो पर पानी फेरोगे!
तेरे पग से चुने काटे थे, अब तुम ही रास्ता घेरोगे!

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