Friday, September 30, 2011

बदलते मौसम

उम्मीद न थी,कि तुम ही उम्मिदो पर पानी फेरोगे!
तेरे पग से चुने काटे थे, अब तुम ही रास्ता घेरोगे!
यह कसुर तुम्हारा नही, यह आज कि आबो हवा है!
बदलते मौसम में, कब कोई हरदम किसी का रहा है!
मेरी आँखों ने दिन में सपने की बुनियाद थी रखी!
हर शक़ पर बेशक़ कि बेवजह फिरियाद थी रखी!
अरे बेदर्द, है दोस्त तू मेरा यह सोच के शर्मशार हूँ मै!
और अब इस गुनाह कि सजा का ख़ुद तलबगार हूँ मै!
नजंदाज कर चुके तुम, पर लगता है कभी तो देखोगे!
यह हाल बेहाल तझसे, आस यही कि कभी तो सम्झोगे!
उम्मीद न थी कि तुम ही उम्मिदो पर पानी फेरोगे!
तेरे पग से चुने काटे थे, अब तुम ही रास्ता घेरोगे!

Sunday, September 18, 2011

रिश्तो का मौखौल


जरूरी नही हर खुबसुररत चीज बेमिसाल ही हो!
और झलकती हर खुशी में अच्छे ख्याल ही हो!
जो जुबा पे हो जरूरी नही वही जज़्बात भी हो!
लव्ज बया जो करते जरूरी नही वही खयालात भी हो!
नकाबपोश जिंदगी में कोई जरूरी नही हर इनसान, इनसान ही हो!
आँसुओं पर मत जाए कोई जरूरी नही वह परेशान ही हो!
जज्बातो से खेलते लोग यहा, रिश्तो का मौखौल बना देते है!
जिस आशियाने ने छत दी बेवक्त लोग उसी को जला देते है!
किसी कि फिक्र नही कद्र केवल अपने शौक से बयान होती है!
उनकी जिंदगी आज अपने से शुरू और अपने से ही खत्म होती है!
हर कि हस्ती पैरो तले और ख़ुद को खुदा मान बैठे है लोग!
एक दिन उन्हें गर्त में जो ले जायेगा लगा बैठे है वह रोग!
रिश्ते कब कैसे टूट जाते है जरूरी नहीं रिश्तों में बबाल ही हो!
ठहरा समुंदर भी डूबा देता है जरूरी नहीं भूचाल ही हो!
जरूरी नही हर खुबसुररत चीज बेमिसाल ही हो!
और झलकती हर खुशी में अच्छे ख्याल ही हो!

Saturday, September 17, 2011

सच्चाई


जिस व्यक्ति का ईमानदारी से दूर दूर तक का साप्ता नही होता वही सच्चाई का ठेका लिए घूमता है, उस हमाम में नंगे आदमी को हर एक के उपर केवल झूठ का पर्दा दिखाई पड़ता है, मुश्किल यह है कि वह ख़ुद कभी अपना चहेरा आइने में नहीं देखना चाहता और अपनी ही सच्चाई से भागता रहता है जिसका खामियाजा उसके अपनों को बेवजह ही झेलना पड़ता है, आज यह सवाल उठता है गलतफहमी कभी कभार हो सकती है पर जब तरह तरह कि गलतफहमी के अम्बार कोई अपनों पर थोपना शुरू कर दे तो उसे हम गलतफहमी का दर्जा नही दे सकते क्योकि ऐसे शक्की लोग रिश्तों का मजाक उड़ानें के सिवा कुछ नही करते, ध्यान रहे ऐसे लोग आपके अपने नही बल्कि मौका परस्त होते है इसलिए समझदारी इसी में है कि समय रहते ऐसे महान लोगो से किनारा कर के संबंधों कि धज्जिया उड़ने से बचा लेना चाहिये क्योकि जिन्हें आप पर आज विश्वास नहीं कोई जरूरी नही कल आप उनका विश्वास जीत पाएँगे दूसरी अहम बात ताली दो हाथों कि देन है एक हाथ कि ताली बेफ्कुफी भरा प्रयास है और जहा तक मेरा मानना है कोई अपने आप को बेफकुफो कि जमात में शामिल नही करना चाहेगा! 

आप अपनों के लिए तब करते है जब कोई अपना लगता है या जब आप धंधा करते है यानी बात साफ़ है रिश्ते तब बनते है जब सामने वाला भी रिश्ता निभाता है और वह भी आप के लिए बहुत कुछ करता है या कर सकता है तो फिर कर्ज़ का सवाल ही नही, दूसरी बात यदि आप धंधे के लिए करते है तो धंधे में लेन देन कि बराबर कि हिस्सेदारी होती है तो उसमें भी कर्ज़ का सवाल ही नही! भाइ सीधी बात नो बकवास में विश्वास रखो तो बेहतर होगा!
अपने इर्द गिर्द देखोगे तो इस सच्चाई से रूबरू हो जाओगे और यह भी हो सकता है यह आपकी अपनी सच्चाई हो, यदि लगे यह तुम्हारे भीतर कि सच्चाई है तो इसे बदल कर अपना आने वाला कल बदल लो ताकि जो दुरिया संबंधों में आई है वह मिट सके!

प्रिय


हम आज भी तेरे अपने है प्रिय हमको तो कोई बैर नही!
पर तुमको अपनी ही कहनी और मेरी सुनने का धैर्य नही!
मै हूँ अपना या हूँ पराया जब तेरे मन यह मंथन होगा!
सोचो और बतला दो प्रिय तब कैसे यह गठबंधन होगा!
विश्वास प्रीत कि है डोर प्रिय इसको सच मानोगे कब!
कल याद आयेंगे दोस्त पुराने, जब खो जायेंगे टूट के सब!
तुमने क्या कुछ कहाँ डाला जिसका कोई सर पैर नही!
लोग तमाशा देख रहे कि अपने संबंधों कि अब खैर नही!
हम आज भी तेरे अपने है प्रिय हमको तो कोई बैर नही!
पर तुमको अपनी ही कहनी और मेरी सुनने का धैर्य नही!

ईर्शा

जाने प्रभु कैसी लोगो कि माया!
क्यू दुजे कि प्रगति से जलती काया!
जो इंसा एक कदम भी न बढ़ पाया!
और न बढ़ने का प्रयास ही भाया!
हा जल भून बैठा देख प्रयास पराया!
अपने दुःख में दुखी नही है भाया!
पर दुजे का सुख कभी देख ना पाया!
जाने प्रभु कैसी लोगो कि माया!
क्यू दुजे कि प्रगति से जलती काया!

मोदी या मनमोहन का सपना


मोदी या मनमोहन का सपना मत दिखलाईये!
नाम में क्या रखा है हालात बदलने चाहिये!
गरीबी एक तमाचा है इस तमाचे से बचाइये!
आतंक भरी जिंदगी को अब सुकून चाहिये!
महंगाई के बोझ तले अब और ना दबाइये!
मुश्किल से कटते सफर, आसान राह बनाइये!
मोदी या मनमोहन का सपना मत दिखलाईये!
नाम में क्या रखा है हालात बदलने चाहिये!
मौजूदा बदहाली का कोई सटीक विकल्प हो तो बताइये!
भ्रष्टाचार कि है ख़बर, निबटने का समाधान चाहिये!
निरे भ्रष्ट निरंकुश घूमते इन्हे जेल में पहुचाइये!
नित नए मुद्दों में पब्लिक को मत उलझाइये!
दल बदल दस्तूर आपका पहले अपने मुद्दे सुलझाइये!
अपने लिए लाख किया कुछ समय देशहित लगाइये!
बेरोजागारी से झुझते नवयुवक उन्हें अवसर तो दिलाइये!
बिना छत के पलते परिवार उन्हें घरौंदा तो दिलाइये!
भूख और गरीबी कब तक पहचान रहेगी भारत कि यह तो बताइये
शर्म है जरा सी भी तो इससे निजात आप दिलाइये!
मोदी या मनमोहन का सपना मत दिखलाईये!
नाम में क्या रखा है हालात बदलने चाहिये!

Wednesday, September 7, 2011

जनता कि चेतावनी


इतने वर्ष बीत गए!!
किया तो कुछ नही, कह दिया तो चुभ गई!
वैसे मिलें नही पर चुनाव में फुर्सत मिल गई!
हर बार कोरे वादे सुन कर जनता भी थक गई!
झूठ कि बुनियाद पर अब तक तो गाड़ी चल गई!
पर आज चेतावनी तुझे के आम जनता बिफर गई!
चुन चुन के हिसाब मांगती अब तेरी खैर नही!
रोज़ नए हुजूम होंगे एक दो आंदोलन नहीं!
तो मशवरा है तुझे के सुधरने का वक्त यही!
अण्णा कौन से दल का है इस बकवास में पड़ नहीं!
रामदेव अन्य दल का मुखौटा यह फिजूल बात कर नही
याद रहे यह जनता ही तुझे उठाती है और मिटा भी सकतीं यही!
भूल मत अमर सिंह है जेल में, तो तुझे भी भेज सकतीं वही!
क्युकि भ्रष्टाचार के तुम पुलिंदे और फँस सकते हो कभी कहीं!
सो चुप रहो और स्वीकार करो, है तेरी भलाई यही!
देखा था आक्रोश तुमने सो भूल मत यह जनता वही!
हिंसा अहिंसा में अ का फर्क भूल ना जये जनता कहीं!
जिस जमी से पैदा हुए पहुचा ना दे वही कहीं!
इसलिए ख़ुद को बदल लो, करो अपने चाल चलन सही!
यह जनता कि चेतावनी है, अभी नहीं तो कभी नही!
इतने वर्ष बीत गए!!
किया तो कुछ नही, कह दिया तो चुभ गई!
वैसे मिलें नही पर चुनाव में फुर्सत मिल गई!

Tuesday, September 6, 2011


कहां कितने खाली पद


प्राथमिक शिक्षक
6,89,256
पुलिसकर्मी
5,30,580
नर्सें (विश्व स्वास्थ्य के मानक के अनुसार)
24,00,000
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन
1,48,361
सेनाओं के अधिकारी
11,137
खुफिया ब्यूरो
9,443
केंद्रीय विद्यालय
6,374
मेडिकल कॉलेज
6,340
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान
1,693
राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान
1,522













बेरोजगारी से लोग त्राहिमान है नेताओं कि चल अचल संपत्ति का ब्यौरा करोड़ों में है, सरकारी कर्मचारियों की 



जवाबदेही के नाम पर नियुक्तिया अधुरी है यानी देश कि बिगड़ती अर्धव्यवथा शीशे कि तरह साफ़ जगजाहिर 


है और ऐसे में सरकार के खिलाफ यदि कोई टिप्पड़ी कर तो विशेषाधिकार के तहत मुकदमे में फँसने के लिए 


तैयार हो जाए, सौ कि सीधी बात यह संसद, मंत्री, नेता, एम एल ए बे लगाम घोड़े है और इनका एक मात्र 


उद्देश्य केवल अपना स्वार्थ!


यह नियुक्तिया अधूरी क्यों है इसका जबाब कौन देगा और इन अधूरी नियुक्तियों के परिणामस्वरूप विभागों 


कि विफलता का भुगतान आख़िर जनता क्यों और कब तक भुगते, यह निकम्मी सरकार क्या मौन रह कर 


अपना पल्ला झाड़ लेगी या जनता के सामने अपनी जबाबदेही का दायित्व निभायेगी?
टिप्पड़ी :-दिग्विजय सिंह ने रविवार को आजमगढ़ में कहा था कि आयकर विभाग ने केजरीवाल को 2005 में नोटिस दिया था। सिंह ने केजरीवाल पर आरोप लगाया था कि उन्होंने ना सिर्फ सरकारी सेवा नियमों का उल्लंघन किया बल्कि वे राजनीति करने में भी शामिल रहे और एनजीओ के माध्यम से करोड़ों जमा किए।
ज्ञात हो विगत दिनों मनीष तिवारी को अपनी मुह कि खानी पड़ी थी जब अण्णा के खिलाफ दिए वक्तव्य के बाद अपनी नाक रगड़नी पड़ी और प्रेसकांफ्रेंस कर अण्णा और देश कि जनता से माफी माँगनी पड़ी!जैसे तैसे तिवारी छूटा और अब आज वैसे ही हालात दिग्विजय पैदा कर रहा है तो मेरा तो मशवरा यही है सुधर जा नेता सुधर जा, और अगर तुम्हारे पास कोई तथ्य है तो सबूत के साथ आ एफ आई आर करा! मुद्दों से भटकाने के लिए हर रोज़ एक नया पैतरा मत फ़ेक!

हर दिल कि गुनगुनाहट

गीत वह जो हर दिल कि गुनगुनाहट बने!



समय वह जो एक खुशी कि आहट बने!



आग वह जो सर्द रातों कि गरमाहट बने!



शख्श वह जो हर किसी कि चाहत बने!



हँसी वह जो बेपन्हा पीर में मुस्क्राहट बने!


है मसीहा वही जो डूबती नैया का केवट बने!


इस सोच को निभा लो अगर,



तो बैरंग हुई जिंदगी जरा खूबसूरत बने!



बदल दो आज अपने को, के कल दूसरों कि नसीहत बने!



गीत वह जो हर दिल कि गुनगुनाहट बने!

वक्त जरा कम है!

जो देखोगे वैसा दिखेगा तुझे!


जो सोचोगे वैसा लगेगा तुझे!


कहा सब ठीक है, पर सब ग़लत भी तो नही है!


आँख भर आती है तो खुशी मिलती भी यही है!


बदलने के लिये वक्त जरा कम है!


पर तेरे हौसलो में अगर दम है!


तो तेरी तक़दीर भी तुझे नवाजेगी!


वक्त के पन्नों में तेरा लोहा ही मानेगी!


तो जो ग़लत है उसका रोना क्यो!


कोई बदलेगा इसका इंतज़ार है क्यों!


क्यू तुम शुरुवात ख़ुद से नही करते!


क्यू जमाने से बेबुनियादी पहेली हो करते!


चाहोगे तो कुछ अच्छा ही होगा!


मत सोचो वही होगा जो मंजुरे खुदा होगा!


अरे हजुर ये तो बस एक बहाना है!


छोड़ो बहाना, अगर ख़ुद को जगाना है!


कभी कोई तो शुरुवात करेगा!


कभी कोई तो जंग-ए ऐलान करेगा!


याद रहे आज जैसा है पर कल न बरबाद रहे!


अपनी तो बीत गयी पर अपनों का कल आबाद रहे!


यह हकीकत ज्यादा अपील कम है


तो अगर तेरे हौसलो में अगर दम है!


तो चैन मत ले क्युकी वक्त जरा कम है!

यकीन

हसरत भरी निगाहें ढुंढती तुझे!


तेरी तड़प में मरना मंजूर है मुझे!


है यकीन कभी न कभी तो इनायत होगी!


मेरे आज के लिए तब ख़ुद से शिकायत होगी!


तू चाहेगी निभायेगी मेरे इतने क़रीब आयेगी!


कि खुशी को खुशी बेपन्हा मिल जायेगी!


बस यही सोच कर तसल्ली है मुझे!


के आज कि जाने दे क्या कहूँ मै तुझे!


हसरत भरी निगाहें ढुंढती तुझे!


तेरी तड़प में मरना मंजूर है मुझे!

Monday, September 5, 2011

विजयश्री


आशाओं के नए परवान चढ़ेंगे यह ही अब नव आशा है!
अपनी उम्मीदें होंगी पूरी बस इतनी सी अभिलाषा है!
राह कर मंज़िल कि ओर छट रहा व्याप्त कुहासा है!
दूर कर साथी, अब तक जो अंतर्मन में छाई हताशा है!
बरस रही परिवर्तन की बारिश अब काहे तू प्यासा है!
होगी भोर निकलेगा रवि जो अभी बादलो में छुपा छुपा सा है!

रख विश्वास, होंगे सपने पूरे अपने, काहे को जिज्ञासा है!
बस कर्म कि राह छोड़ नही, यही विजयश्री कि परिभाषा है!
विजयी होगा, पर दुजे का हक छीन नही वह तो एक पिपासा है!
आशाओं के नए परवान चढ़ेंगे यह ही अब नव आशा है!
अपनी उम्मीदें होंगी पूरी बस इतनी सी अभिलाषा है!

Saturday, September 3, 2011

"परिभाषा बदली खादी की"


परिभाषा बदली खादी कि जिसे हम समाज सेवा से जोड़ते है!
क्योकी सफेद खादी में है घुमते, यह सदा सफेद झूठ बोलते है!
और यह कलंक है देश के जिन्हें हम नेता बोलते है1
इनकी शिराओं में बहता पानी, अब इनके खून नहीं खौलते है!
हुई आतंक कि इंतिहा पर इनके सिंघासन नही डौलते है!
सुनवाई का क्या तकाजा यह इंसाफ पैसो पे तौलते है!
सांसद जुत बजाते संसद में, हर कानून को तोड़ते है!
विद्रोह करे जब देश की जनता तो लाठींयो से रौंदते है!
इस अंधेरगर्दी के खिलाफ हम एकजुट हो क्यू नही बोलते है!
चलो शपथ ले कि देश कि आवाज़ को सत्ता से जोड़ते है!
भ्रष्टाचारी नेताओं को चलो सत्ता से ही उखाड़ फेकते है !
क्योकी सफेद खादी में है घुमते,यह सदा सफेद झूठ बोलते है!
और यह कलंक है देश के जिन्हें हम नेता बोलते है1

Thursday, September 1, 2011

दस्तक


जिंदगी कि किताब में हर रोज़ एक नया पेज बढ़ता है!
किसी ने कोरा छोड़ा तो कोई इबादत लिखता है!
हार गया जो हालातों से वह कहा जहाँ में टिकता है!
जो मुकाबले को तैयार वही मुख्यपटल पर दिखता है!
अरे हालत हुए बत्तर तो क्या!
जज़्बात हुए घायल तो क्या!
अरे इंसाफ कि गुहार में इनसान जो उलझता है!
वोह दूसरों कि बिसात का मोहरा ही बनता है!
तो ख़ुद लिखो तक़दीर अपनी, दूसरों में बयाने-खिलाफत दिखता है!
क्या हो मत कहो,जो हो वोह ख़ुद-बखुद जमाने को दिखता है
मेरे दोस्त ऐ हमदम मेरे, जो दिखता है वोह ही बिकता है!
वरना जमी पर मट्टी से ज्यादा मोल नही, हर रोज़ यहा गुमनाम मरता है!
हर चोट दस्तक सम्भलने कि देख कब तू सम्भलता है!
जिंदगी कि किताब में हर रोज़ एक नया पेज बढ़ता है!
किसी ने कोरा छोड़ा तो कोई इबादत लिखता है!

सिकंदर


जो सोचा वही होगा यह जरूरी तो नही!
हा गर ईमान से कि कोशिश तो खुदा बेपरवाह भी नहीं!
हद होती है हर बात कि पर कोशिशों कि इंतहा नही!
रहमो करम पर जिए तो किसी कि खता भी नही!
कोई बदलेगा तसवीर, ऐसी तो किसी कि तक़दीर नही!
जो ख़ुद चाहोगे तो मंजिले इतनी बेदलील भी नही!
अपने हाथों से बनते बिगड़ते है अरमा इंसा के!
तो सफर तय कर मुसाफिर जरा संभल संभल के!
यह दुनिया है मिलेंगे रहीम भी यहीं,रकीब भी यहीं!
हर एक तजुर्बो से मुकम्मल होगी तेरी हस्ती यही!
कौन रुकावट और कौन मांझी तेरी नौका का पहचान तो सही!
ऐ दोस्त मेरे मंजिलों का असल इम्तिहान है यही!
क्योकी जो जीत गया, बखुदा सिकंदर है वही!
जो हार गया वोह गर्दिशो से कभी उबरा ही नही!