Friday, December 16, 2011

आंदोलन

लुटे अपने ही घर में कि दिलों दिमाग में अजब घबराहट है!
शुक्र है अण्णा के आंदोलन से लगी बदलाव की आहट है!
आक्रोशी जनता में अब फिर से कुछ करने की चाहत है!
राजनितिग्य खेमों में छायी जानआंदोलन से विचित्र आफत है!

सोने की चिड़िया


प्यासी धरती क्यू है आज, दरिया क्यू नहीं बहता!
यह सोने की चिड़िया थी, अब भूखों इंसा यहा मरता!
कलफता है दिल सबका, कोई अब चैन नहीं भरता!
यह मेरे दिल की उलझन है, जो कोई सुलझा नहीं सकता!
मौजूदा हाल से बेहाल इंसा आपस में है लड़ता!
पर सियासत करने वालों पर कोई लगाम नहीं कसता!
क्यू चुप्पी सबने साधी है, कोई कुछ आज नहीं कहता!
वीरों की इस धरती पर, क्या उबलता लहू नहीं बहता!
रोष और जोश का संगम, नाहक अन्याय क्यों सहता!
मन्दिर मस्जिद का झगड़ा, जबकि खुदा दिल में है रहता!
यही धंधा राजनीति का जो सबकी फूट में फलता!
हालातों से समझौता, भला हर इनसान क्यू करता!
मौत से बत्तर है जीना, फिर क्यू मौत से डरता!
आंदोलन एक परिवर्तन है, विद्रोह क्यू नहीं करता!
प्यासी धरती क्यू है आज, दरिया क्यू नहीं बहता!
यह सोने की चिड़िया थी, क्यू भूखों इंसा यहा मरता!

Tuesday, December 13, 2011

तेरी अपील और यह मेरी अपील


हर किसी चौराहे पर है एक ही चर्चा !
कमाई चवन्नी और अठन्नी है खर्चा !
दो जून की रोटी कमाना है मुश्किल!
बच्चों के सपने करे कैसे मुकम्मिल!
सत्ता के ठेकेदारो ने किया हाल बेहाल!
त्रासदी का आलम और जनता हलाल!
हर तरफ़ पसरी दर्दे कहानी यही है!
रोकर भी हासिल अब कुछ नहीं है!

चलो इंतकाम की आवाज़ बुलंद हम करे!
अण्णा के आवाहन पर फिर जेल हम भरे!
समय आ गया जन ताकत दिखा दो!
आंदोलन के सुर से सुर को मिला दो!

आवाज़ हो बुलंद कि तख्तों ताज हिला दो!
मृत हुए सपनों को आज फिर से जिला दो!
देखो यह मौका दोबारा आया के ना आया!
दमखम की चूक से ना हो कोशिस यह जाया!
क्योकी यह तेरी अपील और यह मेरी अपील!


संसद कि अवमानना


संसद कि अवमानना सांसद ख़ुद कर रहे है और दोष अण्णा के सर मड़ रहे है, भाइ आज सांसद आपस में जुत बजाते है अभद्र भाषा का प्रयोग करते है सरकार बनाने के लिए ख़ुद का मोल तय करते है करोड़ों में अपने को बेच अपना मत देते है, पद की प्रतिष्ठा को दाँव पर लगा कर घोटाले करते है तब आप ही बताये जो ख़ुद कानून कि धज्जिया उड़ाते है उन्हें सीना चौड़ा कर के यह कहने का अधिकार की कानून संसद में बनता है सड़कों पर नही किस लि...ए दिया जाए? अण्णा जनता का ही प्रतिरूप है जो सियसतगारो से हक कि लड़ाई लड़ रहा है माना वह कानून की पेचिदकी से वाकिफ नहीं है पर जनता के दर्द से रूबरू है और इस नाते उनका विद्रोह जायज है तभी उनके साथ हर प्रदेश, हर वर्ग, हर जाति के लोग कंधे से कंधा मिला रहे है, आने वाले समय में आंदोलन का प्रसार और विस्तार दोनों ही विशाल स्वरूप में परिवर्तित होगा, मेरी अपील देश के सभी भाइ बहनों से है की जुनून कि इस आँधी को दिन और दोगुनी रात चौगुनी बड़ाये अगर देश को भीतरी गद्दारो से बचाना है अण्णा के मंच से कुछ नेताओं ने कहा की सारे नेतो के चरित्र पर उंगली उठाना नाजायज है तो प्रतिउत्तर में कहना चाहुंगा कि यदि उन नेताओं का कोई सहयोगी भ्रष्टाचार के मामले मए लिप्त है और वे अनभिज्ञ बने हुए है तो वे भी भ्रष्टाचार कए भागीदार है इस लिए अपने चरित्र का प्रमारपत्र ना दे बल्कि आकलन करे की वे कहा ग़लत है, यदि आज यह आकलन ख़ुद ना किया तो जनता अब ख़ुद हिसाब मानगेगी!

Friday, December 2, 2011

दुश्मन सियासी


हवाओं में किसने घोल दिया जहर!
किसने लगाई हर नजर पर नजर!
किसकी वजह से बेसुद यह शहर!
खौफ से भरे क्यू यह सारे पहर!
बेलगाम लोगो पर किसकी महर!
मौन क्यू हम क्यू सह्ते है कहर!
लहू शिराओं का गया क्यू ठहर!
जागो जगाओ फिर से वह लहर!
यह देश हम्हारा और हम्हारा शहर!
मिटा दो उन्हें जिन्होंने घोला जहर!
चप्पे चप्पे पर हो जुनुने नजर!
आज भी ना की जो हमने फिक्र!
तो गद्दारो में आयेगा अपना भी जिक्र!
की अपनी ही माटी को सजा ना सके!
देश कि अस्मत को बचा ना सके!
करो देश के लिए कुछ जद्दो जहद!
वरना गुलामी सहेगी अपनी ही सरहद!
जागो रे जागो ऐ हिंद के वासी!
देश के भीतर यह दुश्मन सियासी!
इनसे ही देश में फैला जहर है!
इनके दम से कहर ही कहर है!
जागो जगाओ फिर से वह लहर!
यह देश हम्हारा और हम्हारा शहर!

Wednesday, November 30, 2011

देश के नेता

हुआ पहुँच से बाहर अपने मन का सपना!
चैन छीन के ले गया मेरा ही कोई अपना!
जिसके हाथों सौपी थी हमने तक़दीर अपने देश की!
उसने ही धूमिल कर दी सूरत इस परिवेश की!
बेच दिया दीन ईमान दौलत के लालच में आकर!
सत्ता कि भूख अजब है, बैठा देखो देश डकार कर!
रोजी रोटी को तरसे गरीब, बिन छत छोटे बच्चे सोये!
महंगाई की बेमौत से कितनों ने अपने प्रिय खोये!
खुशिया तो एक सपना हो गयी, दुखो कि पहर अनिश्चितकाल!
अभी यह हालात है, सिहर जाता मन सोच कर कल का हाल!
वाह रे देश के नेता कुछ तो अब रहम करो!
यह देश तुम्हारा अपना है शर्म करो शर्म करो!
जीते जी मौत तो फाँसी का बंधन कितना है कसना!
जनता के आँसू पर जाने क्यु  उनको अआता है हँसना!
हुआ पहुँच से बाहर अपने मन का सपना!
चैन छीन के ले गया मेरा ही कोई अपना!

न्यूडिटी

कही दिखावे के बाज़ार कि नुमाइश के खातिर!
और कहीं मुश्किल हालातों ने किया जगजाहिर!
किसी से मत पूछ ऐ दोस्त यह दस्तूर क्यू है!
कही मजबुरिया तो कहीं शौक-ए दस्तूर यु है!
कोई तन से है नंगा और कोई मन से है नंगा!
यह हालत बद से बत्तर ही होंगे!
क्युकी मन से न तू ही है चंगा न मै ही हूँ चंगा!
सभी हाथ धोते मिलेंगे यहा, जब तक मिलेगी बहती हुई गंगा!
फिर काहे को पूछें किसी से भाइ, न्यूडिटी में नहीं जब कोई पंगा!
क्युकि कोई तन से है नंगा और कोई मन से है नंगा!

Tuesday, November 29, 2011

“दलदल “

देशहित पर आस्था, सदभाव का रास्ता !
सेवा का भाव और जनता से वास्ता !
यह उसूल राजनीति के, पर कौन इसे निभाता है !
हर दल में दलदल है हर नेता लूट के चला जाता है !
फायेदे कि नीति कायेदे पर भारी है !
जनता का शोषण खुल के जारी है !
नाम का चुनाव लुट की तैयारी है !
गर्व से कहते है अब मेरी भी बारी है !
थक के हाफ्ता, बड़ती महंगाई से कापता !
बेबस हो चिल्लाता पर न सुने कोई दास्ता !
यह हालात आम जनता के, कौन मल्हम लगाता है !
हर दल में दलदल है हर नेता लूट के चला जाता है !
अब सत्ता पर आस्था, दबंगई का रास्ता !
लूट का भाव और निजिहित से वास्ता !
नए उसूल राजनीति के, हर नेता इसे निभाता है !
हर दल में दलदल है हर नेता लूट के चला जाता है !

Monday, November 21, 2011

इनसान

इनसान कि फितरत का अजब तमाशा तो देखो,
किसी के लबो पर मुस्कान से हताशा तो देखो!
किसी को भी अपनी चोट इतना दर्द नही देती,
जबकि दुजे के उभरने पे खूने आँसू रुला देती!
ख़ुद से बेखबर लोगो के लिए जिज्ञासा तो देखो,
साथी साथ नहीं गैरियत का आँखों में कुहासा तो देखो!
अजब गैरियत मामुली बात पर रिश्ते भुला देती है,
जाने क्यू अपनी ही बात अपनों को रुला देती है!
इनसान कि फितरत का अजब तमाशा तो देखो,
किसी के लबो पर मुस्कान से हताशा तो देखो!

Friday, November 4, 2011

खुशिया !


खुशियो कि दिशा में कदम और कदमों को चुमती खुशिया !
दोनों के फासले क़रीब पर मिटती नहीं क्यू यह दुरिया !
अपने छोटे से दिल के कोने में बसी अनगिनत तमन्नाये !
दिल खुशियों से होता पागल जो एक भी मंज़िल  पाये !
हम सबकी खुशियों कि परिभाषा रिश्तों कि डोर से है !
अनुभुतिया समान कोई इस ओर से है कोई उस छोर से है !
अपने से कही ज्यादा जो जुड़ी दिल के क़रीब चितचोर से है !
नन्हे लाल कि किलकारियो में माँ कि खुशियों कि थाह नही !
साँझ ढले जब घर लौटे तो हर इंसा का सच्चा हर्ष प्रवाह वही !
पत्नी खुश जब पति के बागवाँ में सुकून कि बयार बहे !
अध्यापक हर्शित जब शिष्य जीवन के पथ में सफल रहे !
मातृभूमि् प्रसन्न जब हममें सर्वसुख सदभावना बनी रहे !
बहन भाई तो एक दुजे की कुशलछेम से अतिप्रसन्न रहे !
मित्रों कि खुशी मात्र मित्र के संग साथ से है !
प्रेमी की खुशी प्रेयसी के जीवनपर्यंत साथ से है !
पड़ोसी की खुशी हसती खेलती मुलाकात से है !
हर रिश्तो में खुशी प्रेमपूर्वक मेलमिलाप में है !
यानी खुशिया अपनी अपनों से ही है जिनसे आज दूर हुए !
चलो मिटाए भेद हम मन के चलो खुशियों को फिर से छुए !
खुशियो कि दिशा में कदम और कदमों को चुमती खुशिया !
दोनों के फासले क़रीब पर और मिट जायेंगी यह दुरिया !

Tuesday, October 18, 2011

जीवन एक पहेली


कुछ को असमंजस में जीना स्वीकार पर कुछ ने मन में ठानी है!
जीवन एक घनघोर पहेली है जिसकी हर उलझन सुलझानी है!
वेदों से यह मिला ज्ञान कि मनु देह वायु अग्नि और पानी है!
फिर भी इन तत्वों के मात्र प्रकोप से होती क्यू खत्म कहानी है!

अजर अमर जब जीव आत्मा फिर क्यू जीवन आनी जानी है!
जो कल तक थे साथ हम्हारे क्यू उनकी कथा अब पुरानी है!
प्रश्न यही कि म्रत्यु उपरांत किस ठोह बसती यह ज़िंदगानी है!
कल अपना भी चिरनिंद्रा है फिर भी मोह माया अजब सी हैरानी है!
बाल्यावस्था चिंतारहित, वृद्ध देह कष्ट भरी और आती याद जवानी है!
मेरे हठी  मन के प्रश्न अनेक, सो अंतरमन को सही दिशा दिखनी है!
कुछ को असमंजस में जीना स्वीकार पर कुछ ने मन में ठानी है!
जीवन एक घनघोर पहेली है जिसकी हर उलझन सुलझानी है!

Wednesday, October 12, 2011

मृत्यु अंत पड़ाव

निरी गुमसुम सी रातों में जीवन एक पहेली है!
दुनिया के इस मेंले में जिंदगी बड़ी अकेली है!
जीवन का एक सत्य जो जीवन पर भी भारी है!
मृत्यु अंत पड़ाव है मिथ्या यह जीवन संसारी है!
फिर क्यू कलेश इर्शा हर से लड़ने की तैयारी है!
मन कि कोमलता विलुप्त हुई बदले की अंगारी है!
सुख कि परिभाषा बदल गई जो दुजे के सुख में तड़प गई!
अपनी तो अब याद नही हा दुजे कि मुस्कान खटक गई!
जाने कैसा रोष है उपजा कि बैरी यह संसार हुआ!
अपनों की गिनती में अब तो ख़ुद को गिनना दुस्वार हुआ!
जब बोया पेड़ बबुल का तो फिर पुष्प कहा से मह्केंगे!
निरे घमंड के नशे में चूर तो कदम तो अब यह बहकेंगे!
बदलो जागो स्तिथी भापो, कैसी यह बैयार चली है!
सोचो क्यू जहरीले पथ पे यह जिंदगी बड़ चली है!   
निरी गुमसुम सी रातों में जीवन एक पहेली है!
दुनिया के इस मेंले में जिंदगी बड़ी अकेली है!

Friday, September 30, 2011

बदलते मौसम

उम्मीद न थी,कि तुम ही उम्मिदो पर पानी फेरोगे!
तेरे पग से चुने काटे थे, अब तुम ही रास्ता घेरोगे!
यह कसुर तुम्हारा नही, यह आज कि आबो हवा है!
बदलते मौसम में, कब कोई हरदम किसी का रहा है!
मेरी आँखों ने दिन में सपने की बुनियाद थी रखी!
हर शक़ पर बेशक़ कि बेवजह फिरियाद थी रखी!
अरे बेदर्द, है दोस्त तू मेरा यह सोच के शर्मशार हूँ मै!
और अब इस गुनाह कि सजा का ख़ुद तलबगार हूँ मै!
नजंदाज कर चुके तुम, पर लगता है कभी तो देखोगे!
यह हाल बेहाल तझसे, आस यही कि कभी तो सम्झोगे!
उम्मीद न थी कि तुम ही उम्मिदो पर पानी फेरोगे!
तेरे पग से चुने काटे थे, अब तुम ही रास्ता घेरोगे!

Sunday, September 18, 2011

रिश्तो का मौखौल


जरूरी नही हर खुबसुररत चीज बेमिसाल ही हो!
और झलकती हर खुशी में अच्छे ख्याल ही हो!
जो जुबा पे हो जरूरी नही वही जज़्बात भी हो!
लव्ज बया जो करते जरूरी नही वही खयालात भी हो!
नकाबपोश जिंदगी में कोई जरूरी नही हर इनसान, इनसान ही हो!
आँसुओं पर मत जाए कोई जरूरी नही वह परेशान ही हो!
जज्बातो से खेलते लोग यहा, रिश्तो का मौखौल बना देते है!
जिस आशियाने ने छत दी बेवक्त लोग उसी को जला देते है!
किसी कि फिक्र नही कद्र केवल अपने शौक से बयान होती है!
उनकी जिंदगी आज अपने से शुरू और अपने से ही खत्म होती है!
हर कि हस्ती पैरो तले और ख़ुद को खुदा मान बैठे है लोग!
एक दिन उन्हें गर्त में जो ले जायेगा लगा बैठे है वह रोग!
रिश्ते कब कैसे टूट जाते है जरूरी नहीं रिश्तों में बबाल ही हो!
ठहरा समुंदर भी डूबा देता है जरूरी नहीं भूचाल ही हो!
जरूरी नही हर खुबसुररत चीज बेमिसाल ही हो!
और झलकती हर खुशी में अच्छे ख्याल ही हो!

Saturday, September 17, 2011

सच्चाई


जिस व्यक्ति का ईमानदारी से दूर दूर तक का साप्ता नही होता वही सच्चाई का ठेका लिए घूमता है, उस हमाम में नंगे आदमी को हर एक के उपर केवल झूठ का पर्दा दिखाई पड़ता है, मुश्किल यह है कि वह ख़ुद कभी अपना चहेरा आइने में नहीं देखना चाहता और अपनी ही सच्चाई से भागता रहता है जिसका खामियाजा उसके अपनों को बेवजह ही झेलना पड़ता है, आज यह सवाल उठता है गलतफहमी कभी कभार हो सकती है पर जब तरह तरह कि गलतफहमी के अम्बार कोई अपनों पर थोपना शुरू कर दे तो उसे हम गलतफहमी का दर्जा नही दे सकते क्योकि ऐसे शक्की लोग रिश्तों का मजाक उड़ानें के सिवा कुछ नही करते, ध्यान रहे ऐसे लोग आपके अपने नही बल्कि मौका परस्त होते है इसलिए समझदारी इसी में है कि समय रहते ऐसे महान लोगो से किनारा कर के संबंधों कि धज्जिया उड़ने से बचा लेना चाहिये क्योकि जिन्हें आप पर आज विश्वास नहीं कोई जरूरी नही कल आप उनका विश्वास जीत पाएँगे दूसरी अहम बात ताली दो हाथों कि देन है एक हाथ कि ताली बेफ्कुफी भरा प्रयास है और जहा तक मेरा मानना है कोई अपने आप को बेफकुफो कि जमात में शामिल नही करना चाहेगा! 

आप अपनों के लिए तब करते है जब कोई अपना लगता है या जब आप धंधा करते है यानी बात साफ़ है रिश्ते तब बनते है जब सामने वाला भी रिश्ता निभाता है और वह भी आप के लिए बहुत कुछ करता है या कर सकता है तो फिर कर्ज़ का सवाल ही नही, दूसरी बात यदि आप धंधे के लिए करते है तो धंधे में लेन देन कि बराबर कि हिस्सेदारी होती है तो उसमें भी कर्ज़ का सवाल ही नही! भाइ सीधी बात नो बकवास में विश्वास रखो तो बेहतर होगा!
अपने इर्द गिर्द देखोगे तो इस सच्चाई से रूबरू हो जाओगे और यह भी हो सकता है यह आपकी अपनी सच्चाई हो, यदि लगे यह तुम्हारे भीतर कि सच्चाई है तो इसे बदल कर अपना आने वाला कल बदल लो ताकि जो दुरिया संबंधों में आई है वह मिट सके!

प्रिय


हम आज भी तेरे अपने है प्रिय हमको तो कोई बैर नही!
पर तुमको अपनी ही कहनी और मेरी सुनने का धैर्य नही!
मै हूँ अपना या हूँ पराया जब तेरे मन यह मंथन होगा!
सोचो और बतला दो प्रिय तब कैसे यह गठबंधन होगा!
विश्वास प्रीत कि है डोर प्रिय इसको सच मानोगे कब!
कल याद आयेंगे दोस्त पुराने, जब खो जायेंगे टूट के सब!
तुमने क्या कुछ कहाँ डाला जिसका कोई सर पैर नही!
लोग तमाशा देख रहे कि अपने संबंधों कि अब खैर नही!
हम आज भी तेरे अपने है प्रिय हमको तो कोई बैर नही!
पर तुमको अपनी ही कहनी और मेरी सुनने का धैर्य नही!

ईर्शा

जाने प्रभु कैसी लोगो कि माया!
क्यू दुजे कि प्रगति से जलती काया!
जो इंसा एक कदम भी न बढ़ पाया!
और न बढ़ने का प्रयास ही भाया!
हा जल भून बैठा देख प्रयास पराया!
अपने दुःख में दुखी नही है भाया!
पर दुजे का सुख कभी देख ना पाया!
जाने प्रभु कैसी लोगो कि माया!
क्यू दुजे कि प्रगति से जलती काया!

मोदी या मनमोहन का सपना


मोदी या मनमोहन का सपना मत दिखलाईये!
नाम में क्या रखा है हालात बदलने चाहिये!
गरीबी एक तमाचा है इस तमाचे से बचाइये!
आतंक भरी जिंदगी को अब सुकून चाहिये!
महंगाई के बोझ तले अब और ना दबाइये!
मुश्किल से कटते सफर, आसान राह बनाइये!
मोदी या मनमोहन का सपना मत दिखलाईये!
नाम में क्या रखा है हालात बदलने चाहिये!
मौजूदा बदहाली का कोई सटीक विकल्प हो तो बताइये!
भ्रष्टाचार कि है ख़बर, निबटने का समाधान चाहिये!
निरे भ्रष्ट निरंकुश घूमते इन्हे जेल में पहुचाइये!
नित नए मुद्दों में पब्लिक को मत उलझाइये!
दल बदल दस्तूर आपका पहले अपने मुद्दे सुलझाइये!
अपने लिए लाख किया कुछ समय देशहित लगाइये!
बेरोजागारी से झुझते नवयुवक उन्हें अवसर तो दिलाइये!
बिना छत के पलते परिवार उन्हें घरौंदा तो दिलाइये!
भूख और गरीबी कब तक पहचान रहेगी भारत कि यह तो बताइये
शर्म है जरा सी भी तो इससे निजात आप दिलाइये!
मोदी या मनमोहन का सपना मत दिखलाईये!
नाम में क्या रखा है हालात बदलने चाहिये!

Wednesday, September 7, 2011

जनता कि चेतावनी


इतने वर्ष बीत गए!!
किया तो कुछ नही, कह दिया तो चुभ गई!
वैसे मिलें नही पर चुनाव में फुर्सत मिल गई!
हर बार कोरे वादे सुन कर जनता भी थक गई!
झूठ कि बुनियाद पर अब तक तो गाड़ी चल गई!
पर आज चेतावनी तुझे के आम जनता बिफर गई!
चुन चुन के हिसाब मांगती अब तेरी खैर नही!
रोज़ नए हुजूम होंगे एक दो आंदोलन नहीं!
तो मशवरा है तुझे के सुधरने का वक्त यही!
अण्णा कौन से दल का है इस बकवास में पड़ नहीं!
रामदेव अन्य दल का मुखौटा यह फिजूल बात कर नही
याद रहे यह जनता ही तुझे उठाती है और मिटा भी सकतीं यही!
भूल मत अमर सिंह है जेल में, तो तुझे भी भेज सकतीं वही!
क्युकि भ्रष्टाचार के तुम पुलिंदे और फँस सकते हो कभी कहीं!
सो चुप रहो और स्वीकार करो, है तेरी भलाई यही!
देखा था आक्रोश तुमने सो भूल मत यह जनता वही!
हिंसा अहिंसा में अ का फर्क भूल ना जये जनता कहीं!
जिस जमी से पैदा हुए पहुचा ना दे वही कहीं!
इसलिए ख़ुद को बदल लो, करो अपने चाल चलन सही!
यह जनता कि चेतावनी है, अभी नहीं तो कभी नही!
इतने वर्ष बीत गए!!
किया तो कुछ नही, कह दिया तो चुभ गई!
वैसे मिलें नही पर चुनाव में फुर्सत मिल गई!

Tuesday, September 6, 2011


कहां कितने खाली पद


प्राथमिक शिक्षक
6,89,256
पुलिसकर्मी
5,30,580
नर्सें (विश्व स्वास्थ्य के मानक के अनुसार)
24,00,000
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन
1,48,361
सेनाओं के अधिकारी
11,137
खुफिया ब्यूरो
9,443
केंद्रीय विद्यालय
6,374
मेडिकल कॉलेज
6,340
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान
1,693
राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान
1,522













बेरोजगारी से लोग त्राहिमान है नेताओं कि चल अचल संपत्ति का ब्यौरा करोड़ों में है, सरकारी कर्मचारियों की 



जवाबदेही के नाम पर नियुक्तिया अधुरी है यानी देश कि बिगड़ती अर्धव्यवथा शीशे कि तरह साफ़ जगजाहिर 


है और ऐसे में सरकार के खिलाफ यदि कोई टिप्पड़ी कर तो विशेषाधिकार के तहत मुकदमे में फँसने के लिए 


तैयार हो जाए, सौ कि सीधी बात यह संसद, मंत्री, नेता, एम एल ए बे लगाम घोड़े है और इनका एक मात्र 


उद्देश्य केवल अपना स्वार्थ!


यह नियुक्तिया अधूरी क्यों है इसका जबाब कौन देगा और इन अधूरी नियुक्तियों के परिणामस्वरूप विभागों 


कि विफलता का भुगतान आख़िर जनता क्यों और कब तक भुगते, यह निकम्मी सरकार क्या मौन रह कर 


अपना पल्ला झाड़ लेगी या जनता के सामने अपनी जबाबदेही का दायित्व निभायेगी?